2122 2122 212
कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए
वो हमे भी ले गए पिन के लिए
चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे
आप अब भी रो रहे जिन के लिए
शेर को आता है बस करना शिकार
फूल जंगल में खिले किन के लिए
गुठलियों के दाम भी वो ले गया
उसने शीरीं आम जब गिन के लिये
आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ
जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए
आये थे जापान से कल लौट कर
फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए
पास पप्पू एक दिन हो जाएगा
है दुआ इस गैर मुमकिन के लिए
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद।
आदरणीय रवि सर, बहुत दूर तक मार कर रही है आपकी ग़ज़ल. अलहदा काफियों से सजी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
मुहतरम जनाब रवि साहिब, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है दाद के साथ
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -------शेर 2 में तक़ाबुले -रदिफेन हो गया
'' खा रहे वो चाँद पर जाकर शहद ''------सादर
आदरणीय आशुतोष जी आपकी उत्साह बढाती इस टिप्पणी से बहुत खुशी हुई आपका बहुत बहुत धन्यवाद साथ ही ओ बी ओ का भी कि उसके माध्यम से प्राप्त ज्ञान से हम भीकुछ कहने में सक्षम हुए जिसे आप सब ने पहचाना और सराहना की । सादर
आदरणीय शिज्जु भाई आपकी सराहना प्रफुल्लित कर देती है बहुत बहुत आभार
आदरणीय समर साहब आपका आग्रह आदेश है इसीलिय बडों की बात मानकर मंच की प्रति में भी सुधार कर लिया है । आभार
आदरणीय सुशील जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद गजल पसंद आई आपको आप जैसे सजग पाठक का ह्रदय से स्वागत है आप सभी रचनाओ पर उपस्थित होते है और अपनी टिप्पणियों से हौसला बढ़ाते है जबकि हम अतुकांत कविताओ पर अपने अज्ञान के कारण आपकी रचनाआें पर उपस्िथति दर्ज करने में संकोच करते है आशा है आप इसे अन्यथा न लेते हुए अपना स्नेह ऐसे ही बनाए रखेंगे । सादर
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