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तरही ग़ज़ल फ़िराक़ साहब के मिसरे पर

थी यही फूल की किस्मत कि बिखर जाना था,
ये कहाँ तय था कि जुल्फों में ठहर जाना था।

मौज ने चाहा जिधर मोड़ दिया कश्ती को,
"मुझको ये भी न था मालूम किधर जाना था"।

जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,
डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था।

बज़्मे अग्यार में है जलवा नुमाई तेरी ,
इस तग़ाफ़ुल पे तेरे मुझको तो मर जाना था।

गर्द हालात की चहरे पे है,लेकिन तुझको,
आईना बन के मैं आया तो सँवर जाना था।

सुब्ह का भूला तुम्हें कैसे कहूँ मैं बोलो,
शाम होते ही तुम्हे लौट के घर जाना था।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by आशीष यादव on June 17, 2020 at 8:44am

आदरणीय श्री रवि शुक्ला सर, यह गजल बहुत अच्छी लगी। मैंने कई बार पढ़ा। 

Comment by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on July 19, 2019 at 11:41pm

 Ravi Shukla जी,
तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल | अच्छे अशआर | हार्दिक बधाई | 

- शून्य आकांक्षी 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 5, 2019 at 2:20pm

आदरणीय रवि सर सादर वन्दन! उम्दा अशआर कहे हैं। हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Hariom Shrivastava on March 4, 2019 at 11:02pm

वाह,वाहहह,उम्दा ग़ज़ल कही

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 4, 2019 at 11:59am

खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी बधाई

Comment by नादिर ख़ान on March 3, 2019 at 11:55am

जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,

डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था।

बज़्मे अग्यार में है जलवा नुमाई तेरी ,

इस तग़ाफ़ुल पे तेरे मुझको तो मर जाना था। खूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद आदरणीय रवि शुक्ला साहब 

Comment by Samar kabeer on March 2, 2019 at 3:08pm

जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,अव्वल तो ये कि तरही मिसरा 'फ़िराक़'साहिब का नहीं है,टाइटल बदलें ।

ओबीओ के तरही मिसरे पर उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Balram Dhakar on March 1, 2019 at 8:10pm

आदरणीय रवि सर, सादर अभिवादन।

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है । शेर दर शेर के साथ मुबारकबाद पेश है, कुबूल फरमाएँ। 

जो थे साहिल पे तमाशाई यही कहते थे,
डूबने वाले को अब तक तो उभर जाना था। इस शेर के लिए अलग से बहुत बहुत बधाई ।

सादर। 

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