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हक़ीक़त जुदा थी कहानी अलग है
सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग है
ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे
मग़र आँख से बहता पानी अलग है
है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती
यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है
मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा
कहे ऊला कुछ और सानी अलग है
पढ़ें गौर से जल्दबाजी न …
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2022 at 8:30am — 10 Comments
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