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छिपा हुआ रक्षाबंधन का, सार रेशमी डोरी में।
गुंथा हुआ भाई बहना का, प्यार रेशमी डोरी में।
कहीं बसे बेटी लेकिन, हर साल मायके आ जाती,
सजी धजी लेकर सारा, अधिकार रेशमी डोरी में।
बड़ा सबल होता यह रिश्ता, स्वस्थ भाव, बंधन पावन,
गहन विचारों का होता, आधार रेशमी डोरी में।
विदा बहन होती जब कोई, एक वायदा ले जाती,
जुड़े रहेंगे मन के सारे, तार रेशमी डोरी में।
विनय यही हों दृढ़ जीवन…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on August 20, 2013 at 11:01am — 24 Comments
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सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें!
नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें!
चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,
मिला सुर गुनगुनाती हैं, सलोनी ओस की बूँदें!
चितेरा कौन है? जो रात, में जाजम बिछा जाता,
न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!
करिश्मा है खुदा का या, कि ऋतु रानी का ये जादू,
घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!
नवल सूरज की किरणों में, छिपी…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on August 6, 2013 at 10:00pm — 22 Comments
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