चार कुण्डलियाँ
(१)
लीला है उस राम की, अन्ना यहाँ हजार
लोग जमा हो गये हैं, छोड़ दिया घरबार
छोड़ दिया घरबार, सह रहे आँधी-पानी
अनशन की शुरुआत, शुरू वही कहानी
भाग रही है भीड़, सभी कुछ गीला-गीला
हे प्रभु इस…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 19, 2011 at 4:00pm — 6 Comments
बचपन में
एक दिन
एक संटी को
मुँह में दबाकर
मैं गन्ना
समझ बैठी
आज लिखते हुये
फिर भूल से
किसी के पन्ने को
मैं अपना पन्ना
समझ बैठी
न जाने कितनी
होती रहती हैं
मिस्टेक जिंदगी में
कुछ अनजाने में
कुछ नादानी में
फिर आती है
झेंप…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on August 4, 2011 at 6:00pm — 8 Comments
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