लिख डाली थी प्रेम कहानी कभी बड़े अरमानों से.
नहीं क्लेश किंचित था मुझको विस्फोटी सामानों से.
देश व्यथित हो गया आज जब अपनों औ बेगानों से.
टीस उठी तो कलम उठाई निकले तीर कमानों से..
मानवता का ह्रास हो रहा बिका हुश्न बाजारों में.
कर्णधार जो बनकर आये लिप्त हुए व्यभिचारों में.
अरे भान करवा दो इनको डर उपजे गद्दारों में.
अभी चमक बाकी है यारों भारत की तलवारों में..
छले गये हैं बहुत अभी तक अब न कभी छलने देंगें.
जाति-पांति के भेदभाव में देश नहीं जलने…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on August 11, 2012 at 11:00am — 8 Comments
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