221 2121 1221 212
ये तितलियाँ ये फूल भी सकते में आ गये
जब पेड़ चल के ख़ुद ही बगीचेे मेंं आ गए
कल तक मिरे अज़ीज़ अंँधेरों में क़ैद थे
आंँखें रगड़ - रगड़ के उजाले में आ गये
नीलाम हो रही है ख़ुशी सुन रहे थे कल
हम भी थे बेवक़ूफ़ जो झांँसे में आ गये
मारा गया गली में उसे सब के सामने
दर पर खड़े थे लोग दरीचे में आ गये
कह कर गए थे है ये मुलाक़ात आख़िरी
जैसे ही आँख झपकी वो सपने में आ…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 31, 2020 at 10:00pm — 14 Comments
122 122 122 12
नहीं आया फिर वो बुला कर मुझे
मज़ा ले रहा है सता कर मुझे
अगर मेरे अंदर समाया है तू
कभी आइने में दिखा कर मुझे
हमेशा मिला है तू रोते हुए
मिला कर कभी मुस्कुरा कर मुझे
सदा बस मुझे हुक्म देता है क्यूँ
सलाह मशवरा भी दिया कर मुझे
है डर कुर्सियों के नगर में यही
न वो बैठ जाए उठा कर मुझे
धड़कता हूँ मैं शोर करता नहीं
मैं दिल हूँ तेरा ही सुना कर…
Added by सालिक गणवीर on August 30, 2020 at 5:30pm — 9 Comments
221 1221 1221 122
हर सम्त अंँधेरा है इसे दूर भगाओ
है कोई मुनव्वर तो मिरे सामने आओ
क़ातिल हो तो क़ातिल की तरह पेश भी आओ
घायल हूँ मिरे ज़ख़्म पे मरहम न लगाओ
कोई न उठाएगा यहाँ बोझ तुम्हारा
शानों को ज़रा और भी मजबूत बनाओ
कश्ती को सँभालो न रहो चूर नशे में
गर डूबना है डूबो हमें तो न डुबाओ
काँटों की तो तासीर है वो चुभते रहेंगे
तुम फूल हो ख़ुशबू की तरह फैलते जाओ
ऐसे भी वो करता है सर-ए-आम…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 21, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
2122 1122 1122 22
जिसको हम ग़ैर समझते थे हमारा निकला
उससे रिश्ता तो कई साल पुराना निकला (1)
हम भी हरचंद गुनहगार नहीं थे लेकिन
बे-क़ुसूरों में फ़क़त नाम तुम्हारा निकला (2)
हम जिसे क़ैद समझते थे बदन में अपने
वक़्त आया तो वो आज़ाद परिंदा निकला (3)
जान पर खेल के जाँ मेरी बचाई उसने
मैं जिसे समझा था क़ातिल वो मसीहा निकला (4)
दोस्तो जान छिड़कता था जो कल तक मुझ पर
आज वो शख़्स मेरे ख़ून का प्यासा निकला…
Added by सालिक गणवीर on August 13, 2020 at 4:00pm — 10 Comments
221 2121 1221 212
रस्ते की बात है न ये रहबर की बात है
पा लेना मंज़िलों को मुक़द्दर की बात है
ये बोरिया की है मिरे बिस्तर की बात है
फूलों की सेज मिलना मुक़द्दर की बात है
उस वाक़िआ का ज़िक्र मुनासिब नहीं यहाँ
चल घर पे चलके बात करें घर की बात है
कब कौन किसके शाने पे चढ़ जाए क्या पता
ऊपर पहुँचना भी तो सुअवसर की बात है
सब की क़लम से एक ही क़िस्सा निकलता था
आज़ादी छिन गई थी पिछत्तर की बात…
Added by सालिक गणवीर on August 10, 2020 at 11:30pm — 12 Comments
(2122 1212 22/122)
लोग घर के हों या कि बाहर के
प्यार करिएगा उनसे जी भर के
जाने क्या कह दिया है क़तरे ने
हौसले पस्त हैं समंदर के
जिस्म पर जब कोई निशाँ ही नहीं
कौन देखेगा ज़ख़्म अंदर के
दोस्ती उन से कर ली दरिया ने
जो थे दुश्मन कभी समंदर के
एक शीशे से ख़ौफ़ खाते हैं
लोग जो लग रहे थे पत्थर के
एक बस माँ को बाँट पाए नहीं
घर के टुकड़े हुए बराबर के
गरचे हर घर की है कहानी…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on August 2, 2020 at 3:30pm — 15 Comments
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