किसान हीरा की पत्नी घाट से जो मटका भर कर लाती थी, उसमें छोटा सा छेद हो गया था| उस पर हाथ रखते रखते भी पानी ज़मीन पर गिर ही जाता| जैसे तैसे वो पानी लेकर आती थी|
उसने अपने पति से इस बात की शिकायत की कि, अब इस मटके से पानी भरना संभव नहीं है, आप नया मटका ले आओ| हीरा थोड़ा व्यस्त था, जब तक वो नया मटका खरीदता, तब तक पुराने मटके का छेद काफी बढ़ गया और बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही गिर जाता|
नया मटका आते ही पुराना मटका हीरा की पत्नी ने बाहर फैंक दिया, वहां काफी कीचड़ थी,…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 1:00am — 8 Comments
उसके लिए कहना कितना आसान था,
सुखों के लिए बिक रहा मेरा ईमान था |
जो दुखों के पंख लगा के घर में आता है,
उसकी खुशामदीद का क्यों अरमान था |
तय की थीं मंज़िलें जिन्होंने दोस्ती की
वो कह गए कि उनका बड़ा एहसान था |
मैनें खोद के देखा इंसानियत की परतों को
ना तो वहां रूह थी और कहाँ इंसान था |
आओ छुपा दें हर ग़म को आखों में ही
सुख को सुखाना कहां इतना आसान था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 12:00am — 10 Comments
न था मैं तो भी जीवन था
न होउंगा तो भी जीवन रहेगा |
जीवन तो पाल है नाव की
धारा नहीं हवा के साथ बहेगा |
मेरा अक्स बन जाएगा इक दिन
टंगी हुई तस्वीर की तरह |
जिनकी वजह से हर्फ़ होंगे खामोश
जीने की वजह मेरा नाम न रहेगा|
मैं करता रहा अनदेखी, लगता रहा
नूर पे हर रोज़ एक ग्रहण |
क्यों चाँद को लाये नूर और मेरे बीच,
आँख का मेरे हर सितारा कहेगा|
(मौलिक और अप्रकाशित)
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 1, 2013 at 1:00am — 1 Comment
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