हे पार्थ के सारथी, हे जसुमति के लाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
ध्वस्त किया था कंस का ,इक दिन तुमने मान
निडर हो गया कंस अब ,और हुआ बलवान
घूम रहा है ओढ़ कर ,सज्जनता की खाल
हरने जन की पीर अब , फिर आओ गोपाल
पाँचाली के चीर का ,किया खूब विस्तार
नयनों में भर नीर फिर ,तुमको रही पुकार
अंध सभा में ठोकता , दुःशासन फिर ताल
हरने जन की पीर अब ,फिर आओ गोपाल
अर्जुन का रथ थाम कर…
ContinueAdded by pratibha pande on August 25, 2016 at 8:00am — 14 Comments
चौराहे नाके पर बालक
बेच रहा है आज तिरंगा
झंडे लेकर उससे इक दो
कुछ पैसे उसको दे डालो
फिर गाडी में उन्हें लगा कर
आज़ादी की रस्म निभा लो
खाली हाथों घर जो लौटा
बाप करेगा पी कर पंगा
शनि लेकर कल घूम रहा था
सरसों तेल व जलती बाती
भूखे बच्चे चौराहे पर
कब बीतेगी साढ़े साती
रोजी उसकी ही खा जाता
खादी जाली का हर दंगा
बीते न बस रस्मी…
ContinueAdded by pratibha pande on August 15, 2016 at 11:18am — 4 Comments
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