दूर क्षितिज में देखा तारा ,सबका मन हर्षाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने,मरियम सुत था आया
दया प्रेम भाईचारे का ,था सन्देश सुनाता
दीन दुखी की सेवा से ही ,जुड़े प्रभु से नाता
आडम्बर में लिप्त जनों को .उसका सत्य न भाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
मानवता के हत्यारे तो ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
था सलीब में जड़ा खड़ा वो ,जोड़े दर्द से नाता
लहू बह रहा घावों से था ,फिर भी कहता जाता
प्रभु इनको तू माफ़ी देना ,हरना पाप की छाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
न रोक सकी सूलि ईसा को ,ना गाँधी को गोली
हर युग अलग नाम से आते ,दुखियों के हमजोली
जात धर्म से हटकर देखें ,उसने जो समझाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
प्रयास से पूर्व की पंक्तियों का दोष कुछ हद तक कम हुआ है. रचनाकर्म शब्दों के बहतर चयन और उनके सार्थक प्रयोग से ही सँवरता है.
शुभेच्छाएँ
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,आप के द्वारा इंगित व्याकरण त्रुटी व् उससे उत्पन्न अर्थ के अनर्थ को मै समझ गई हूँ ,उस बंद को मैंने कुछ इस प्रकार संशोधित किया है , कृपया मार्ग दर्शन करें
मानवता के हत्यारे तो ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया
पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया .....आपका पुनः आभार सादर
आदरणीय समर कबीर जी ,रचना पर आपके द्वारा मिली तारीफ़ से मन उत्साहित है ,आपका तहे दिल से शुक्रिया
रचना के मर्म पर अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से आभार आदरणीय उस्मानी जी
आदरणीय श्याम नारायण जी ,रचना पर आकर आपने मेरा उत्साहवर्धन किया , आपका तहे दिल से आभार
आदरणीया प्रतिभा जी,
छान्दसिक रचना पर आपके प्रयास से मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है. छन्दोबद्ध रचनाओं पर होता हुआ सतत प्रयास ही गीतों में गेयता के संयत होने के मार्ग प्रशस्त करता है. आपका इस ओर उद्यत होना मंच को भी आश्वस्त कर रहा है.
यह अवश्य है कि आपकी कोशिश बहुत हद तक सधी हुई है. फिर भी कुछेक जगहों पर विशेष ध्यान की आवश्यकता बन रही है. विशेषकर शब्दकल के ऊपर आपको संयत होना आवश्यक है. यानी, त्रिकल के पश्चात त्रिकल शबोद्ण् का आना गेयता को सहज रखने में अत्यंत सहायक हुआ करता है. निरंतर अभ्यास से आपकी दृष्टि विकसित होती जायेगी.
सर्वोपरि, रचनाओं में सबसे अधिक जो ध्यान आकर्षित करती है, वह है उसकी भाषा. रचनाओं की भाषा न केवल व्याकरण सम्मत हो बल्कि समुचित रूप से संप्रेष्य भी हो.
मानवता के ये हत्यारे ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उसको फिर सलीब में ठोका ,कंट मुकुट पहनाया
उपर्युक्त बन्द में आपने ’ये’ का प्रयोग किया है . यह ’ये’ भारी भ्रमकारक है. यह अवश्य ही मरियम-सुत केलिए नहीं है, बल्कि उनके लिए है जिन्होंने ईशु मसीह को शारीरिक कष्ट और मानसिक दुःख दिये थे. लेकिन रचना का मुख्य पात्र मरियम-सुत, यानी ईशु मसीह है. अतः भान होता है कि ’ये’ रचना के मुख्य पात्र के लिए ही आया है. व्याकरण में सर्वनाम के प्रयोग का ढंग इसी ओर इंगित भी करता है. कहना न होगा, ऐसा कोई इंगित रचना के लिए महाभारी दोष ही है.
विश्वास है आप समझ रही होंगी.
आपकी इस प्रस्तुति केक्रम में हुए अभ्यास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया.
शुभेच्छाएँ
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i |
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