मिला कंधा नहीं हमको पड़ी है लाश ठेले में
खिलाया क्यों ज़हर तुमने मिला कर हम को केले में
चली आ तू बहाने से मिलेगें आज हम दोनो
न आई तो समझ लेना फसा देगें झमेले में
न आती थी हमें नीदें कहें जब तक न गुडनाइट
किये हम रात भर बाते दिया जो फोन मेले में
पहन कर लाल जोड़ा तुम चली हो साथ क्याे उनके
करे हम ये दुआ रब से रहे तू तो तबेले में
सजाई मॉंग क्यों अपनी तड़पता छोड़…
Added by Akhand Gahmari on August 23, 2014 at 8:17pm — 22 Comments
मिले है आज हम दोनो हसीं इक शाम हो जाये
कसम दो तोड़ तुम उसकी चलो इक जाम हो जाये
पड़ा सूखा मरे भ्ूाखो नहीं कोई हमें पूछे
कही ऐसा न हो यारो कि कल्लेआम हो जाये
नहीं रखते कभ्ाी धीरज किसी भी काम में यारो
बचा लो नाम तुम मेरा न वो बदनाम हो जाये
तुम्हारे प्यार में जानम मरेगें डूब कर सुन लो
मरा पागल दिवाना है न चरचा आम हो जाये
मिलेगा अब नहीं जीवन मिला इक बार जो तुमको
करो कुछ काम अब ऐसा तुम्हारा नाम हो…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on August 19, 2014 at 8:16pm — 15 Comments
कभी तो प्यार हमको वो किया होता
वफा के नाम पे धोखा दिया होता
तड़पती रूह को भी चैन आ जाता
कफ़न उसने हमारा गर सिया होता
शिकायत जिन्दगी से हम नहीं करते
दवा बन दर्द वो मेरा लिया होता
न मैखाने कभी जाते भुलाने गम
हमारे अश्क उसने गर पिया होता
हमें तो जिन्दगी से प्यार हो जाता
अगर वो साथ दो पल बस जिया होता
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Added by Akhand Gahmari on August 4, 2014 at 12:16am — 6 Comments
यात्रा का प्रथम चरण---गहमर से वाराणसी
मैं बाबा बरफानी की यात्रा का मन बना चुका था। परिवार से इजाजत और दोस्तो की सलाह के बाद यह इच्छा और बलवती हो गयी। मैने मन की सुनते हुए 23 जुलाई की तिथी निश्चित किया और अपने काम में लग गया। घर से महज 200 मीटर की दूरी पर भी अारक्षण केन्द्र होने के वावजूद मैं आरक्षण नहीं करा पाया आैर न ही किसी प्रकार की तैयारी कर रहा था।धीरे धीरे 18 जुलाई आ गया तब जा कर मैने अपना आरक्षण कराया, इस दौरान गहमर…
Added by Akhand Gahmari on August 2, 2014 at 10:00pm — 12 Comments
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