2122 2122 212
लौट कर जब शाम को मैं घर गया ,
निस्फ़ दफ़्तर साथ में लेकर गया ।
आंख में देखी थकानों की नदी,
डूब कर उत्साह घर का मर गया ।
खेंच लो तुम भी तनाबें नींद की ,
चाँद खिड़की से हमें कह कर गया ।
बात जो मैं भूलना चाहूं वही ,
ध्यान भी उस बात पर अक्सर गया ।
जब गया तो वो सिंकदर या सखी ,
शान शौकत सब यहीं पर धर गया ।
क्या बताएं वक़्त की मज़बूरियां…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 28, 2015 at 6:06pm — 10 Comments
2122 2122 2122 212
जब कभी तनहाइयों का आईना मुझको मिला ।
अपने अन्दर आदमी इक दूसरा मुझको मिला ।।
हमसुखन वो हमनफ़स वो हमसफ़र हमजाद भी ।
जान लूँ इस चाह में कब आशना मुझको मिला ।।
वक्ते रुखसत हाल उसका भी यही था दोस्तों ।
अक्स मेरा चश्मे नम पर कांपता मुझको मिला ।।
मंज़िलों से और बेहतर हसरते मंज़िल लगे ।
लिख सकूं तफसील जिसकी रास्ता मुझको मिला ।।
जो बजाते खुद हुआ इल्मो अदब का आफ़ताब…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 22, 2015 at 3:20pm — 8 Comments
हुई जो ख़बर नाम चलने लगा है ।
ये सारा जहां हमसे जलने लगा है ।।
यहां झूठ से सबको नफरत है फिर भी ।
है किसकी ये शह जो मचलने लगा है ।।
न तुम आग उगलो न मै ज़ह्र घोलूं ।
ये सोचें लहू क्यूँ उबलने लगा है ।।
बुरे वक्त में लोग करते है जुर्रत ।
हुई शाम सूरज भी ढलने लगा है ।।
तुम्हें देखते ही हमारी कबा से ।
उदासी का आलम पिघलने लगा है ।।
अज़ल से वही है ज़फ़ा का बहाना ।
कि मौसम के…
ContinueAdded by Ravi Shukla on September 15, 2015 at 5:11pm — 26 Comments
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