लो अब मैं सुधर गया
उनके दिल से उतर गया
याद न आया उनको मैं भी
मेरी कुरबत भी न भा पाई
उनकी सुधियों से गुजर गया
इक पतझड़ सा बिखर गया
मलूल हुआ आनन्द
सोचकर कि वो
इजहारे-वक्त पर मुकर गया
उसूल देखो यार मेरे
साए में…
Added by anand murthy on September 29, 2014 at 7:30pm — 4 Comments
तेरे बिन अपना हाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं
गुल बिन ज्यों गुलदस्ता है
भूले को ज्यों इक रस्ता है
कॉपी बिन ज्यों इक बस्ता है
और दाल बिना ज्यों खस्ता है
वसंत...बिना इक साल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
माँ बिन .. जैसे लोरी है
भ्रात बिना वो डोरी ..सखी
चोर बिना ..ज्यों चोरी है
पनघट है बिन गोरी..सखी
राधा बिन ज्यों गोपाल.......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
ज्यों अंगना है बिन नोनी के
ब्रिटेन है..... बिन टोनी…
ContinueAdded by anand murthy on September 27, 2014 at 12:00pm — 2 Comments
काशी की दुनिया हो
या काबा की बस्ती हो
यूँ ही न उजड़े चाहे
फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।
साहिल से बिछड़ी हुई
मुक़ाम-ए-पास हो जाए
लहरों में फँसती चाहे
केवट की कश्ती हो।।
शोहरत की मस्ती हो
या माले की हस्ती हो
यूँ ही न टूटे कोई चाहे
मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।
मातहतों की मस्ती…
Added by anand murthy on September 11, 2014 at 4:00pm — 8 Comments
बन के अजनबी वो अक्सर मेरे दर से गुजरते हैं
फ़कत दीदार को खुद को रस्तों से जोड़ रक्खा हैं
दिल की दरियादिली दर्पण-सी सच्ची देखकर
घर के आईनों में तेरी तस्वीर को जोड़ रक्खा हैं
हकीकत की सतह से उस चाँद को देख रक्खा है..
खुदा के उस हसीं अजूबे से नाता जोड़ रक्खा है
कहने को तो उन्होने बहुत कुछ छोड़ रक्खा है...
चाहत की चिट्ठी को लिफाफों में मोड़ रक्खा है..
हवाओं के सहारे खुशबू कुछ इस तरफ़ आयी....
मैंने भी तेज नजरो…
ContinueAdded by anand murthy on September 8, 2014 at 6:00pm — 2 Comments
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