2122 2122 2122 212
यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए
इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए
जब कभी परदेश में मुझको सताया यादों ने
साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए
बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता
जेब में बच्चों के जब भी चार आने आ गए
पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे
बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए
कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ
हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2015 at 9:17am — 5 Comments
१२१२ १२१२ १२१२ १२१२
हरेक संत देखिये कतार ही कतार है
ये ज़िन्दगी बिमार है ये ज़िन्दगी बिमार है
अभी जो लूट है मची कहो ये कौन रोके अब
यहाँ पे भ्रष्ट आदमी लगे कि बेशुमार है
सवाल आँख ने किया जवाब आँख ने दिया
बे - लफ्ज़ बात हो गयी अजब यही तो प्यार है
जो कर्ज की मियाद थी वो ख़त्म ही नहीं हुई
लगे कि मेरे भाग में उधार ही उधार है
मुहासे जिनको कह रहे शबाब की हैं चिठ्ठियाँ
कि जान लो वो…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 1, 2015 at 7:30pm — 6 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |