बह्र : १२२२ १२२२ १२२
सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था
बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था
हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ
मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था
यकीनन तुम हो मंजिल जिंदगी की
ये दिल यूँ आज तक दौड़ा नहीं था
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:33am — 20 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २
चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं
जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं
कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे
जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं
उनकी तो हर बात सियासी होगी ही
यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?
दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी
मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं
रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर
हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:29pm — 16 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
इंसाँ दुत्कारे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
पर पत्थर पूजे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
शब्दों से नारी की पूजा होती है लेकिन उस पर
ज़ुल्म सभी ढाये जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
नफ़रत फैलाने वाले बन जाते हैं नेता, मंत्री
पर प्रेमी मारे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में
दिन भर मेहनत करने वाले मुश्किल से खाना पाते
ढोंगी सब खाये जाते हैं धर्मान्धों की नगरी…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2015 at 5:50pm — 18 Comments
रोबोट घंटों लगातार काम करता है
और कुछ ही समय में फिर से रीचार्ज हो जाता है
कारखाने से कबाड़खाने तक
रोबोट कहीं नियम नहीं तोड़ता
रोबोट चुपचाप सुनता है उच्चाधिकारियों की सारी बातें
और इजाज़त मिलने पर ही बोलता है
रोबोट बिना किसी विरोध के उन सारी बातों में यकीन कर लेता है
जो उसकी मेमोरी में भरी जाती हैं
रोबोट अपने मालिकों के लिए ढेर सारा पैसा कमाता है
और बदले में उसे सिर्फ़…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 8, 2015 at 6:36pm — 10 Comments
देशों की चमचमाती हुई राजधानियाँ
हर आकाशगंगा के केन्द्र में
बैठा हुआ एक ब्लैक होल
किसी गाँव के सूरज से करोड़ों गुना बड़ा
अपने आसपास मौजूद तारों को
अपने इशारों पर नचाता हुआ
उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है
फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार
उनके प्रकाश से
जो शिकार हो रहे हैं
उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का
ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट देता है
जिसके अनुसार किसी बंद…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 3, 2015 at 1:45am — 8 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अपनी ताक़त के बलबूते हाथी ज़िन्दा है
मिल-जुलकर रहती है सो चींटी भी ज़िन्दा है
कैसे मानूँ रूठ गया है मेरा रब मुझसे
मैं ज़िन्दा हूँ, पैमाना है, साकी ज़िन्दा है
सारे साँचे देख रहे हैं मुझको अचरज से
कैसे अब तक मेरे भीतर बागी ज़िन्दा है
लड़ते हैं मौसम से, सिस्टम से मरते दम तक
इसीलिए ज़िन्दा हैं खेत, किसानी ज़िन्दा है
सबकुछ बेच रही, मानव से लेकर ईश्वर तक
ऐसे थोड़े ही…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 2, 2015 at 12:34pm — 14 Comments
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