बह्र : 2122-1122-1122-112/22
फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने
मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने
और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने
डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर
बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने
आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने
ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ
वक़्त…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 10:00am — 30 Comments
Added by Mahendra Kumar on September 12, 2017 at 6:34pm — 29 Comments
Added by Mahendra Kumar on September 3, 2017 at 12:39pm — 6 Comments
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