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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Blog – September 2016 Archive (3)

ककुभ छंद (16, 14 चरणांत 22)

कब वीरों की दग्ध चिता पर कब समाधि पर आओगे

कब सुख से सूखे लोचन पर करुणा  के घन लाओगे

 

काले मन से कब छूटेगा

मोह श्वेत परिधानों का

कब तक आलंबन पाओगे

व्योम प्रवृत्त विमानों का

कब तक शोणित की सरिता में तुम निर्विघ्न नहाओगे

 

नश्वर देह सुरक्षित कितना

रक्षक के समुदायों से

दंभ भरा अस्तित्व बचेगा

कब तक कठिन उपायों से

मन के उजले संकेतों को कब तक तुम झुठलाओगे

 

झूठा नाटक कब तक मरने

वालों पर…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 30, 2016 at 7:07pm — 14 Comments

आक्रोश (लघु कथा )

बेटा जो नयी वैकेंसी निकली थी, तुमने फार्म डाल दिया ?’- पिता के चेहरे पर खुशी थी . उनके हाथ में एक मोबाईल था .

‘नहीं पापा, मैं कोई फॉर्म नहीं डालूँगा . आपके कहने पर पहले कितने  फार्म भर चुका हूँ , कितने इक्जाम दिए, पर कोई नतीजा निकला ?’

‘बेटा तकदीर को कोई नहीं जानता --------?’

‘बेकार की बाते हैं पापा, नौकरी किस्मत से नहीं योग्यता से मिलती है एक्स्ट्रा आर्डिनरी बच्चों को नौकरी की कमी नहीं , पर जो बच्चे सामान्य हैं वे क्या करें, सरकार के पास उनके लिए कोई व्यवस्था…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2016 at 3:30pm — 5 Comments

बुड्ढा उठता क्यों नहीं ?

 

शिद्दत की प्यास-----

‘बेटा ----‘

वृद्ध-बीमार पिता ने पुकारा

कोई उत्तर नहीं आया  

‘बेटा श्रवण -----‘

पिता ने फिर पुकारा

फिर कोई उत्तर नहीं आया

‘बहू ------ ‘

वृद्ध ने विकल्प तलाशना चाहा

कोई हलचल नहीं हुयी

वृद्ध ने एक और प्रयास करना चाहा

पर खुश्क गले से

नहीं निकल पायी आवाज 

उसने कोशिश की स्वयं उठने की

बूढ़े पांवों में नहीं थी

शरीर का बोझ उठाने की ताकत   

वह लड़खड़ा कर…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2016 at 3:46pm — 5 Comments

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