2122 2122 2122
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जिंदगी का नाम चलना, चल मुसाफिर
जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1
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दे न पायें शूल पथ के अश्रु तुझको
जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2
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फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही
हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3
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मानता हूँ आचरण हो यूँ सरल पर
राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4
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रात का आँचल जो फैला है गगन तक
इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments
2122 2122 2122 212
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प्यार को साधो अगर तो जिंदगी हो जाएगी
गर रखो बैशाखियों सा बेबसी हो जाएगी /1
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बात कड़वी प्यार से कह दोस्ती हो जाएगी
तल्ख लहजे से कहेगा दुश्मनी हो जाएगी /2
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फिर घटा छाने लगी है दूर नभ में इसलिए
सूखती हर डाल यारो फिर हरी हो जाएगी /3
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मौत तय है तो न डर, लड़, हर मुसीबत से मनुज
भागना तो इक तरह से खुदकुशी हो जाएगी /4
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मन मिले तो पास में सब, हैं दरारें कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2014 at 11:05am — 17 Comments
2122 2122 2122 212
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दिल हमारा तो नहीं था आशियाने के लिए
फिर कहाँ से आ गये दुख घर बसाने के लिए
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हम ने सोचा था कि होंगी महफिलों में रंगतें
पर मिली वो ही उदासी जी दुखाने के लिए
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था सुना हमने बुजुर्गो से कि कातिल नफरतें
प्यार भी जरिया बना पर खूँ बहाने के लिए
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जब सभल जाएगा तुझको पीर देगा अनगिनत
हो रहा बेचैन तू भी किस जमाने के लिए
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जब बहाने थे नये तो दिल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2014 at 10:48am — 14 Comments
2122 2122 2122 2122
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हौसला देते न जो ये पाँव के छाले सफर में
हर सफर घबरा के यारो, छोड़ आते हम अधर में
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एक भटकन है जो सबको, न्योत लाती है यहाँ तक
कौन आता है स्वयं ही, यार दुख के इस नगर में
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एक वो है पालती जो, काजलों के साथ आँसू
कौन रख पाता भला अब, सौतने दो एक घर में
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आशिकी की इंतहाँ ये, खुदकुशी का शौक मत कह
हॅसते-हॅसते डाल दी जो किश्तियाँ उसने भवर में
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खो गया चंचलपना सब,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 8, 2014 at 12:00pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
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रहे अरमाँ अधूरे जो, लगे मन को सताने फिर
चला है चाँद दरिया में हटा घूँघट नहाने फिर /1/
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नसीहत सब को दें चाहे बताकर दिन पुराने फिर
नजारा छुप के पर्दे में मगर लेंगे सयाने फिर /2/
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उन्हें मौका मिला है तो, करेंगे हसरतें पूरी
सितारे नीर भरने के गढे़ंगे कुछ बहाने फिर /3/
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छुपा सकता नहीं कुछ भी खुदा से जब करम अपने
रखूँ मैं किस से पर्दा तब बता तू ही…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 7, 2014 at 10:30am — 8 Comments
2222 2222 2222 222
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रिश्ते उधड़े खुद ही सिलना सच कहता हूँ यारो मैं
औरों को मत रोते दिखना सच कहता हूँ यारो मैं
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अपना हो या बेगाना हो सुख में ही अपना होता
जब भी मिलना हॅसके मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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चाहे भाये कुछ पल लेकिन आगे चलकर दुख देगा
उम्मीदों से जादा मिलना सच कहता हूँ यारो मैं
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दुख से सुख का सुख से दुख का मौसम जैसा नाता है
हर मौसम को अपना कहना सच कहता हूँ यारो…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
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