Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 29, 2015 at 11:40pm — 8 Comments
2122 122 122 2122 122 122
किस तरह से दशहरा मनायें; राम जी रावणी मन हुआ है।
राम नामी वसन पर न जायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।
वासना से भरा है कलश ये, हो गया कामनाओं के वश में।
भेष साधू का झूठा, भुलायें राम जी रावणी मन हुआ है।।
स्वर्ण का ये महल चाहता है, मन्त्र बस धन का ये बांचता है।
किस तरह से "स्वयं" को जगायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।
स्वार्थ का आचरण हर घड़ी है, नेक नीयत दफ़न हो गयी है।
आज खुद को विभीषण बनायें, राम जी रावणी मन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 22, 2015 at 7:00pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
तेरे नैनों के पर्दे को उठा लेती तो बेहतर था।
निगाहों को मेरे मुख पर टिका देती तो बेहतर था।।
हाँ बेहतर तो यही होता कि तुझमें खो ही जाता मैं।
औ तुम भी मेरी आँखों में समा जाती तो बेहतर था।।
न खाली हो सके तुम भी बहुत मशरूफ थे हम भी।
घड़ी कोई हमें तुमसे मिला देती तो बेहतर था।।
पता है, मेरे इस दिल में कई सपने सुहाने थे।
तू अपने ख़्वाब सारे जो बता देती तो बेहतर था।।
यहाँ खोने का डर था तो वहाँ संकोच का…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 18, 2015 at 11:00pm — 12 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 17, 2015 at 11:28am — 4 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 15, 2015 at 12:49am — 3 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 13, 2015 at 11:39pm — 14 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 6, 2015 at 6:13pm — 9 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 4, 2015 at 12:38am — 16 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 1, 2015 at 5:00pm — 4 Comments
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