मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन मफार्इलुन
वो तब होता है बेकल एक पल को कल नहीं मिलताा
उसे सेल फोन पर जब भी कभी सिगनल नहीे मिलता।
गरीबों की दुआओं से उन्हें भी स्वर्ग मिलता है,
जिन्हें मरते समय दो बूँद गंगा जल नहीे मिलता ।
मुसाफिर की बड़ी मुषिकल से तपती दोपहर कटती ,
अगर रस्ते में बरगद , नीम या पीपल नहीें मिलता।
किसी के घर में मिलतीं सिलिलयाँ सोने की चाँदी की ,
किसी के घर में साहब दो किलो चावल नहीं मिलता।
हमारे…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 27, 2013 at 9:14pm — 11 Comments
जिनके मुँह में नहीं बतीसी भार्इ साहब ,
चले बजाने वो भी सीटी भार्इ साहब।
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भारी भरकम हाथी पर भारी पड़ती है ,
कभी - कभी छोटी सी चींटी भार्इ साहब।
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काट रहे हैं हम सबकी जड धीरे-धीरे ,
करके बातें मीठी - मीठी भार्इ साहब।
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मंहगार्इ डार्इन का ऐसा कोप हुआ है ,
पैंट हो गर्इ सबकी ढीली भार्इ साहब।
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प्रजातंत्र में गूँगी लड़की का बहुमत से ,
रखा गया है नाम सुरीली भार्इ साहब।
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सबको रार्इ खुद को पर्वत समझ रहा…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 23, 2013 at 8:30pm — 10 Comments
काँटे हैं किस के पास में किस पे गुलाब है।
जनता के पास आज भी सबका हिसाब है।
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पढ़कर के जिस किताब को बच्चे बहक गये ,
बोलो र्इमान वालो वो कैसी किताब है।
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लालो गुहर नही है मेरे पास में मगर ,
जो कुछ भी मेरे पास है वो लाजबाब है।
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बैठे है करके बंद वो दरवाजे खिड़कियाँ ,
ये सोचकर कि अपना मुकददर खराब है।
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ये सच है हाथ पाँव में अब जान ही नही ,
जिन्दा लहू में अब भी मेरे इन्कलाब है।
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अंगार को बुझाइये पानी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 19, 2013 at 11:30am — 8 Comments
खड़े होकर सभी के सामने अक्सर दुतल्ले से।
जो बातें सच थीं ज्यों की त्यों कहीं हमने धड़ल्ले से।
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सुना है राह के काँटे भी उसका कुछ न कर पाये,
मग़र पैरों मे छाले पड़ गये जूते के तल्ले से।
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अकेला ही मैं दुश्मन के मुकाबिल में रहा अक्सर ,
मदद करने नही निकला कोर्इ बन्दा मुहल्ले से।
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वो इन्टरनेषनल क्रिकेट की करते समीक्षा हैं,
नही निकले कभी भी चार रन तक जिनके बल्ले से।
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तुम्हारे गाँव के बारे में ये मेरा तजुर्बा है,…
Added by Ram Awadh VIshwakarma on October 7, 2013 at 10:30am — 17 Comments
कलाम सबकी जुबाँ पर है लाकलाम तेरा।
सलाम करता है झुक कर तुझे गुलाम तेरा।
वो पाक़ साफ है इल्जाम न लगा उस पर,
करेगा काम वो वैसा ही जैसा दाम तेरा।
किसी को ताज़ किसी को दिये फटे कपड़े,
बड़े गज़ब का है दुनिया मे इन्तजाम तेरा।
जो अपने आप को पहुँचा हुआ समझते हैं,
समझ में उनके भी आता नहीं है काम तेरा।
तेरे ही नाम से होते हैं सारे काम मेरे,
मैं मरते वक्त तक लेता रहूँगा नाम तेरा।
मौलिक अप्रकाशित…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on October 4, 2013 at 8:00pm — 19 Comments
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