212 212 212 212
ज़िंदगी रास्ता देखती हो मेरा
सामना मौत से भी तभी हो मेरा (1)
मैं चलूँ अपने बच्चों की उंँगली पकड़
फिर भले ये सफ़र आख़िरी हो मेरा (2)
वाक़िआ होगा पहला यक़ीं मानिए
सामना मौत से जब कभी हो मेरा (3)
अब ये मुमकिन नहीं आज के दौर में
शह्र में भी रहूँ गांँव भी हो मेरा (4)
ख़ाक ऐसे करें नफ़रतों का जहाँ
आग तेरी रहे और घी हो मेरा (5)
ज़िंदगी को भी आना पड़े सामने…
Added by सालिक गणवीर on October 26, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा
जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा (1)
ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर
मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा (2)
फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन
ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा (3)
ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको
फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा (4)
जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on October 19, 2020 at 7:30am — 8 Comments
2122. 1122. 1122. 22.
रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे
अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)
सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी
दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे (2)
क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से
चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)
सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं
आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)
हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें
ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले…
Added by सालिक गणवीर on October 11, 2020 at 3:30pm — 11 Comments
122 122
उधर जब तपन है
इधर भी अगन है
अदू साथ तेरे
मुझे क्यों जलन है
ये क्यों मीठी मीठी
सी दिल में चुभन है
वही दुश्मन-ए-जाँ
वही जान-ए-मन है
सुखी वो नहीं पर
दुखी आज मन है
जहाँ फूल थे कल
वहाँ आज गन है
यहाँ झूठ सच है
यही तो चलन है
कहो कुछ भी'सालिक'
तुम्हारा दहन है
*मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by सालिक गणवीर on October 5, 2020 at 9:30pm — 10 Comments
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