मधु पल ....
विरह के मारे ये लोचन
नीर कहाँ ले जाएँ
पी को पीर सुनाएँ कैसे
और स्मृति से बतियाएँ
वो स्पर्श एकांत के कैसे
अंग विस्मृत कर जाएँ
कालजयी पल अधर मिलन के
हृदय विचलित कर जाएँ
वायु वेग से सूखे पत्ते
मौन भंग कर जाएँ
बाट जोहते पगले नैना
बरबस भर-भर आएं
साँझ ढले सब पंख पखेरू
अपने नीड़ आ जाएँ
घूंघट में यूँ नैनों को पी
बार बार तरसाएँ …
Added by Sushil Sarna on October 30, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
क्षणिकाएँ
1.
थम गई
गर्जन मेघों की
दामिनी भी
शरमा गयी
सावन की पहली बूँद
उनकी ज़ुल्फ़ों से टकरा गयी
............................................
2.
साया जवानी का
अंजाम देख
घबरा गया
वर्तमान की
टूटी लाठी से
भूतकाल टकरा गया
..............................................
3.
किसकी जुदाई का दंश
पाषाण को रुला गया
लहरों पे झील की
आसमाँ का चाँद
बस तन्हा
रह गया…
Added by Sushil Sarna on October 25, 2014 at 2:00pm — 13 Comments
हुस्न को दर्पण का ...
प्रीत को समर्पण का ..
विरह को क्रंदन का ....
इंतज़ार रहता है//
भोर को अभिनन्दन का ...
बाहों को बंधन का ...
भाल को चन्दन का ...
इंतज़ार रहता है//
धड़कन को चाहत का ...
यौवन को आहट का ...
घायल को राहत का ...
इंतज़ार रहता है//.
तिमिर को प्रात का ...
वृद्ध को साथ का...
चाँद को रात का ...
इंतज़ार रहता है//
आस को विशवास का…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2014 at 2:53pm — 6 Comments
Added by Sushil Sarna on October 11, 2014 at 12:26pm — 9 Comments
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