आहट पर दोहा त्रयी :
हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।
हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।।
आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।
आहट के परिधान में, जीवित है प्रतिधान ।।
आहट उलझन प्रीत की, आहट उसके प्राण ।
आहट की हर चाप में, गूँजे प्रीत पुराण।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 28, 2020 at 9:11pm — 4 Comments
गुज़रे हुए मौसम, ,,,
अन्तहीन सफ़र
तुम और मैं
जैसे
ख़ामोश पथिक
अनजाने मोड़
अनजानी मंजिल
कसमसाती अभिव्यक्तियां
अनजानी आतुरता
देखते रह गए
गुजरते हुए कदमों को
अपने ऊपर से
गुलमोहर के फूल
तुम और मैं
दो ज़िस्म
दो साये
चलते रहे
खड़े -खड़े
मीलों तक
और
ख़ामोशियों के बवंडर में
देखते रहे
अपनी मुहब्बत
तन्हा आंखों की
गहराईयों में
गुज़रे हुए मौसम की…
Added by Sushil Sarna on October 27, 2020 at 7:55pm — 6 Comments
ख़ामोश दो किनारे ....
बरसों के बाद
हम मिले भी तो किसी अजनबी की तरह
हमारे बीच का मौन
जैसे किसी अपराधबोध से ग्रसित
रिश्ते का प्रतिनिधित्व कर रहा हो
ख़ामोशी के एक किनारे पर तुम
सिर को झुकाये खड़ी हो
और
दूसरे किनारे पर मैं
मौन का वरण किये खड़ा हूँ
क्या कभी मिट पाएँगे
हम दोनों के मिलन में अवरोधक
ख़ामोशी के
ख़ामोश दो किनारे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 16, 2020 at 6:54pm — 6 Comments
पागल दिल का पागल सपना ......
इत् -उत् ढूँढूँ साजन अपना
नैनन द्वार भी आये न सपना
बैरी कजरा बह -बह जाए
का से कहूँ दुःख साजन अपना
तुम यथार्थ से बन गए सपना
प्यार किया करके बिसराया
प्रीतम तोहे तरस न आया
तडपत तडपत रैन बिताई
काहे तो पे ये मन आया
मुश्किल दिल को है समझाना
भूलूँ कैसे तेरी बातें
प्यार भरी वो प्यारी रातें
हर आहट पर ऐसा लगता
लौटी जैसे फिर मुलाकातें
आहत करे तेरा यूँ…
Added by Sushil Sarna on October 14, 2020 at 6:21pm — 2 Comments
पानी से आग बुझाने की ....
किस तिनके ने दी इजाज़त
घर में धूप को आने की
दहलीज़ पे रातों की आकर
पलकों में ख़्वाब जलाने की
जिस खिड़की पर लगी थी चिलमन
नज़र से हुस्न बचाने की
उस खिड़की पर रुकी थी नज़रें
इस कम्बख़्त ज़माने की
मंज़िल उसको मान के हम
उसके इश्क में जलते रहे
वो चालें अपनी चलते रहे
हमसे हमें चुराने की
ख़्वाहिश बस ख़्वाहिश ही रही
पलकों में घर बनाने की
नादाँ दिल को मिली सज़ा
नज़रों से नज़र मिलाने की
कसर न छोड़ी…
Added by Sushil Sarna on October 12, 2020 at 3:25pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on October 7, 2020 at 3:03pm — 2 Comments
वेदना कुछ दोहे :
गली गली में घूमते , कामुक वहशी आज।
नहीं सुरक्षित आजकल, बहु-बेटी की लाज।।
इतने वहशी हो गए, जाने कैसे लोग।
रिश्ते दूषित कर गया, कामुकता का रोग।।
पीड़ित की पीड़ा भला, क्या समझे शैतान।
नोच-ंनोच वहशी करे, नारी लहूलुहान।।
बेटे से बेटी बड़ी, कहने की है बात।
बेटी सहती उम्र भर , अनचाहे आघात।।
नारी का कामी करें, छलनी हर सम्मान।
आदिकाल से आज तक, सहती वो अपमान ।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 5, 2020 at 4:00pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on October 2, 2020 at 1:57pm — 6 Comments
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