पूरे मोहल्ले में केवल बब्लू के घर की ही पक्की छत थी, बाकि सारे मकान कच्चे थे. बब्लू को बचपन से ही पतंगबाजी का बड़ा शौक था. हमेशा छत पर चढ़कर पतंग उड़ाकर वो मोहल्ले के लोंगो, जो कि अपने आँगन से पतंगबाजी करते थे, सभी की पतंग काट दिया करता था. अभी चार माह पहले ही पतंग उड़ाते हुए ,छत से बुरी तरह से नीचे जमीन पर गिर जाने के बाद भी बब्लू का पतंग उड़ाने का शौक तो नही गया, किन्तु अब छत की हद को बार-बार ध्यान में रखता है, और एक दिन में कई पतंगें कटवा देता…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 8:00am — 20 Comments
बहुत सुंदर है
मीठा है बहुत,
बिलकुल मिश्री की तरह
मिल जाता है, कहीं भी
कभी भी, हर तरफ
खोखलापन लिए, समा जाये इसमें
कोई भी,कितना भी.
सच! ही तो है
असत्य जो है
कितना आसान है
इसे पाना, स्वीकारना
खुश हो लेना
चलायमान तो इतना
कि रुकता ही नहीं
अनेकों राहें, उनमे भी कई राहें
पूर्ण सामयिक ही बन बैठा है.
और वो देखो !.. सत्य
वहीं खड़ा है, अनंत काल से
न हिलता न…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 8, 2014 at 10:02am — 18 Comments
“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन” रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा
“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..! अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा
“ अरे बाबू जी..! कैसी…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 11:59am — 14 Comments
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