रमिता रंगनाथन, मिसेज़ शास्त्री की खातिर में यूँ जुटी थीं- मानों कोई भक्त, भगवान की सेवा में हो। क्यों न हो- एक तो बॉस की बीबी, दूसरे फॉरेन रिटर्न। अहोभाग्य- जो खुद उनसे मिलने, उनके घर तक आयीं! पहले वडा और कॉफ़ी का दौर चला फिर थोड़ी देर के बाद चाय पीना तय हुआ। इस बीच 'मैडम जी', सिंगापुर के स्तुतिगान में लगीं थीं- "यू नो- उधर क्या बिल्डिंग्स हैं! इत्ती बड़ी बड़ी...'एंड' तक देख लो तो सर घूम जाता है...और क्या ग्लैमर!! आई शुड से- 'इट्स ए हेवेन फॉर शॉपर्स'..." रमिता ने महाराजिन को, चाय रखकर जाने का…
ContinueAdded by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 3:00pm — 6 Comments
मेरे पास नहीं
बूढ़े बरगद सी बाहें
फैलाकर
जिन्हें अनवरत
बांट सकूं
छांह
धरती को चीरती
विकराल जड़ें -
गहराइयों की
लेती जो थाह
पास नहीं मेरे
पीपल का जादुई
संगीत
वो हरी- भरी
काया ,
वह पत्तों का
मर्मर गीत
कोई न
पूजे मुझको
पीपल, बरगद
के मानिंद
कंटकों से
पट गयी है
देह ऐसे-
निकट आते
हैं नहीं
खग वृन्द
मरुथली संसार में
रेत के विस्तार में…
Added by Vinita Shukla on October 14, 2012 at 12:30pm — 14 Comments
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ
झरते हैं सपने
इक पल
हँसना तो
दूजे पल
क्लेश
ये....................
रेतघड़ी समय की
चलती ही रहती
लम्हों की पूंजी
हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के
रह जाते अवशेष
ये....................
किसी से हो मिलना
किसी से बिछड़ना
जग के मेले में
बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी -
सत्य यह अशेष
ये .......................
Added by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:31am — 8 Comments
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