अरकान- 212 212 212 212
दर्द सीने में अक्सर छुपाती है माँ|
तब कहीं जाकर फिर मुस्कुराती है माँ|
ख़ुद न सोने की चिंता वो करती मगर,
लोरियां गा के हमको सुलाती है माँ|
रूठ जाते हैं हम जो कहीं माँ से तो,
नाज-नखरे हमारे उठाती है माँ|
लाख काँटे हों जीवन में उसके मगर,
फूल बच्चों पे अपनी लुटाती है माँ|
माँ क्या होती है पूछो यतीमों से तुम,
रात-दिन उनके सपनों में आती है…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 26, 2015 at 10:30pm — 7 Comments
महकती ज़िन्दगी हो फिर शिकायत कौन करता है
बिना कारण ही मरने की हिमाकत कौन करता है
तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है
बड़े काबिल हो तुम लेकिन तुम्हारी जेब है खाली,
भला ऐसों से भी यारा मुहब्बत कौन करता है|
कड़कती धूप भी सहते कभी बरसात ठंडी भी,
खुदा ऐसों पे तेरे बिन इनायत कौन करता है|
न पूजेगा कोई तुमको खुदा गर सामने आया ,
बिना डर और लालच के इवादत कौन…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 24, 2015 at 1:30pm — 6 Comments
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