२१२२ ११२२ ११२२ २२
अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो
बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो
मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर
अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो
बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ
तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो
सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना
तुम हकीकत नज़र आज मिलाकर देखो
तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ
राह में सबके…
ContinueAdded by नादिर ख़ान on November 24, 2015 at 6:30pm — 12 Comments
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