जा रे-जा रे कारे कागा मेरे छत पर आना ना
आना है तो आजा पर छत पर शोर मचाना ना
तू आएगा छत पर मेरे कांव-कांव चिल्लाएगा
ना जाने किस अतिथि को मेरे घर बुलाएगा
उल्टी पड़ी पतीली मेरी और चूल्हे में आंच नहीं
थाल सजाऊँ कैसे मैं घर में…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 28, 2022 at 4:44pm — 4 Comments
अंतरराष्ट्रीय_पुरुष_दिवस
पुरूष क्यूँ
रो नहीं सकता?
भाव विभोर हो नहीं सकता
किसने उससे
नर होने का अधिकार छिन लिया?
कहो भला
उसने पुरुष के साथ ऐसा क्यूँ किया?
क्या उसका मन आहत नहीं होता?
क्या उसका तन
तानों से घायल नहीं होता?
झेल जाता है सब कुछ
बस अपने नर होने की आर में
पर उसे रोने का अधिकार नहीं है
रोएगा तो कमज़ोर माना जायेगा
औरों से उसे
कमतर आँका जायेगा
समाज में फिर तिरस्कार होता है
अपनों के हीं सभा…
Added by AMAN SINHA on November 19, 2022 at 6:00pm — No Comments
सावन सूखा बीत रहा है, एक बूंद की प्यास में
रूह बदन में कैद है अब भी, तुझ से मिलने की आस में
जैसे दरिया के लहरों, में कश्ती गोते खाते है
हम तेरी यादों में हर दिन, वैसे हीं डूबे जाते है…
ContinueAdded by AMAN SINHA on November 14, 2022 at 9:47am — No Comments
Added by AMAN SINHA on November 7, 2022 at 2:29pm — 1 Comment
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