शब्द-पुष्पों का एक गुच्छा सादर प्रस्तुत है --
हर दिल के दरबार में, बादशाह बेताज
सहज-धीर-उद्भाव-नत, ओबीओ सरताज
ओबीओ सरताज, पूर्ण जो जीवन जीता
’जो कुछ है, वह सार’, सोच का सुगढ़ प्रणेता …
Added by Saurabh Pandey on November 18, 2012 at 11:30am — 25 Comments
शिथिल मनस पे वार कर, जो कर सके तो कर अभी..
प्रहार बार-बार कर, जो कर सके तो कर अभी.. !
अजस्र श्रोत-विन्दु था मनस कभी बहार का
यही हृदय उदाहरण व पुंज था दुलार का
प्रवाह किंतु रुद्ध अब, विदीर्ण-त्रस्त स्वर…
Added by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 1:24pm — 25 Comments
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