हमें अबूझा ही लगा, लोकतंत्र का रूप ..
रात-रात भर मंत्रणा, करती व्याकुल धूप !
कैसे कितना कौन कब, किसे लगाता तेल
गणना-गणित चुनाव का, भितरघात-धुरखेल
बहुत कमीने रहनुमा, क्या हम बाँधें आस
इंद्रमंच पर बैठ कर, करते हैं बकवास ।।
दिखा-दिखा वह तर्जनी, पुलक रहा हर बार
मालिक हम भी जानते, क्या होती सरकार !!
राजा-राजा खेलते, बेवकूफ हम रंक !
उँगली थामे सोचिए, दाग लगा या डंक ?
***
सौरभ
(मौलिक और…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on November 3, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
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