साँस चलती रही, आस पलती रही.
रात ढलने तलक, लौ मचलती रही.
वादियों में दिखी, ओस-बूँदें सहर,
चाँदनी रात भर, आँख मलती रही.
कुछ हसीं चाहतों की तमन्ना लिए,
जिन्दगी आँसुओं से बहलती रही.
मैं समझता हुयी उम्र पूरी मगर,
मौत जाने किधर को टहलती रही.
इक उगा था कभी चाँद मेरे फ़लक,
जुगनुओं को यही बात खलती रही.
वो सुनी थी कभी बांसुरी की सदा,
ज़िंदगी रागनी में बदलती रही.
मैं…
ContinueAdded by harivallabh sharma on November 26, 2014 at 2:00pm — 23 Comments
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