दोहे
तोड़ो चुप्पी और फिर, कह दो मन की बात
व्याकुल तपती देह पर, हो सुख की बरसात।१।
लाज शरम चौपाल की, यू मत करो किलोल
जो भी मन की बात हो, अँखियों से दो बोल।२।
मन से मन की बातकर, कम कर लो हर पीर
बाँध रखो मत गाँठ में, दुख देगा गम्भीर।३।
मन से निकलेगी अगर, दुखिया मन की बात
जो भी शोषक जन रहे, देगी ढब आधात।४।
कहना मन की बात नित, करके सोच विचार
जोड़े यह व्यवहार को, तोड़े यह …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2019 at 6:00am — 10 Comments
२२१/२१२१/२२२/१२१२
धन से न आप तोलिए लम्हों की तितलियाँ
कहना फजूल खोलिए लम्हों की तितलियाँ।१।
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उड़ती हैं आसपास नित सबके मचल - मचल
पकड़ी हैं किस ने बोलिए लम्हों की तितलियाँ।२।
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सुनते जमाना उन का ही होता रहा सदा
फिरते हैं साथ जो लिए लम्हों की तितलियाँ।३।
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किस्मत हैं लाए साथ में तुमसे ही ब्याहने
कहती हैं द्वार खोलिए लम्हों की तितलियाँ।४।
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जिसने न खोला द्वार फिर आती कभी नहीं
कितना भी चाहे रो लिए…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2019 at 5:24am — 14 Comments
जले दिवस भर धूप में, चलते - चलते पाँव
क्यों ओ! प्यारी शाम तुम, जा बैठी हो गाँव।१।
रोज शाम को झील पर, आओ प्यारी शाम
गोद तुम्हारी सिर रखूँ, कर लूँ कुछ आराम।२।
जब तक हो यूँ पास में, तुम ओ! प्यारी शाम
थकन भरे हर पाँव को, मिल जाता आराम।३।
बेघर पन्छी डाल पर, बैठा है उस पार
आयी प्यारी शाम है, खोलो कोई द्वार।४।
कितनी प्यारी शाम है, इत उत फैली छाँव
निकले चादर छोड़ कर, जी बहलाने पाँव।५।
आयी प्यारी शाम…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 19, 2019 at 6:00am — 10 Comments
दोहे
भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।
खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।
लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।
खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।
रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही सुरक्षा माँगते, वही कह रहे न्याय।५।
काली वर्दी पड़ गयी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2019 at 8:09pm — 12 Comments
याद बीते कल का वो सुख क्यों करें
ऐसे दूना अपना ही दुख क्यों करें।१।
पंक की कर मन्च से आलोचना
और गँदला बोलिए मुख क्यों करें।२।
छोड़ दुत्कारों से आये तब भला
उनके घर की ओर आमुख क्यों करें।३।
एक भी छाता न हो जिस शह्र में
बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें।४।
इसकी उनके पास में जब ना दवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2019 at 5:07pm — 2 Comments
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