Added by pooja yadav on November 17, 2014 at 9:52pm — 18 Comments
कुछ दो-चार मरीजोँ, नर्स एक बड़ी-सी खिड़की और क्रीम कलर के बड़े-बड़े पर्दोँ के अलावा उस अस्पताल मेँ मेरे लिए देखने
लायक कुछ भी नही था। ऑपरेशन के तुरन्त बाद मैँ अपने बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी। कुछ ग्लूकोज़ की बूँदेँ जो नलियोँ के सहारे रिस-रिस कर मेरे हाथ से होती हुई मेरे शरीर मेँ शामिल हो जाती थी, ने मेरे हाथ को किसी पत्थर की तरह भारी और ठण्डा कर दिया था और मैँ कम्बल से ढ़ककर इसे गरम रखने का नाकाम प्रयास करती। पैर अभी भी सुन्न थे पर कमर का दर्द मुझे अन्दर तक तोड़ देता था मानो मेरी जीजिविषा को…
Added by pooja yadav on November 17, 2014 at 3:30pm — 9 Comments
Added by pooja yadav on November 12, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
महज 12 वर्ष की कच्ची उम्र मेँ ही परिस्थितियोँ मेँ ढल गया था वो। जिस उम्र मेँ बच्चोँ को खेल खिलौनोँ सैर सपाटोँ का शौक होता है उस उम्र मेँ मोहन को बस एक ही शौक था- पढ़ने का। पढ़ाई मेँ तेज मोहन बड़ा ही महत्वाकांक्षी बालक था। लेकिन वक्त की ये टेढी-मेढी गलियाँ कब, किसे, ज़िन्दगी का कौन सा मोड़ दिखा देँ कौन जाने ? ऐसी ही किसी गली के मोड़ पर मोहन ने वो गरीबी देखी जिसमेँ दो जून का भोजन भी मुश्किल होता था और स्कूल तो दूर-दूर तक दिखाई न पड़ता था। पर मोहन भला कैसे हार मानता ? उसे तो बड़ा आदमी बनना था। इस सुखद…
ContinueAdded by pooja yadav on November 11, 2014 at 1:00am — 15 Comments
"दो लड़कियाँ तो पहले ही थी, अब ये एक और हो गई।" उसने बड़ी मायूसी से कहा।
"तू चिन्ता मत कर कमला। आजकल की लड़कियाँ किसी भी चीज़ मेँ पीछे नही हैँ।, हर काम बराबर से करती हैँ, बल्कि माँ बाप के लिए जितना लड़कियाँ करती हैँ उतना तो आजकल लड़के भी नही करते।" सरोज ने अपनी पड़ोसन को समझाते हुए कहा।
"तू ठीक ही कहती है सरोज। अरे हाँ याद आया, तेरी बहू भी तो पेट से है न? कौन सा महीना है?"
"पाँचवा महीना है। अगर ठाकुर जी की कृपा रही तो पोता ही होगा।"
"पूजा"
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by pooja yadav on November 5, 2014 at 12:00pm — 13 Comments
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