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किसी की बेरुख़ी है या सनम हालात का दुख
परेशां हूँ हुआ है अब तुझे किस बात का दुख
तुम्हें तो पड़ गई हैं आदतें सी रतजगों की
तुम्हें क्या फ़र्क़ पड़ता बढ़ रहा जो रात का दुख
जमाती सर्दियाँ, फुटपाथ का घर, पेट ख़ाली
उन्हें सोने नहीं देता कई हालात का दुख
भिंगोते रात का आँचल बशर अपने ग़मों से…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:00am — 5 Comments
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बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे ज़िन्दगी बना बैठा
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा
धूप अपने शबाब पर आई
और साया भी दूर जा बैठा
ख़त्म कैसे भला अँधेरा हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा
फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा
'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने चाँद अनमना बैठा
(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 18, 2021 at 12:30pm — 10 Comments
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