ग़ज़ल (प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है)
(फ्अल_फ ऊलन _फ्अल _फ ऊलन _फ़ेलुन _फा)
प्यार का हर दस्तूर निभाना पड़ता है l
यार का हर ग़म हँस के उठाना पड़ता है l
बाज़ कहाँ वो यूँ आता है महफ़िल में
शीशा नुक्ता चीं को दिखाना पड़ता है l
यूँ ही मुसाफ़िर मिटती नहीं है तारीकी
रस्ते में इक दीप जलाना पड़ता है l
उलफत की मंज़िल आसान नहीं इतनी
धोका हर इक मोड़ पे खाना पड़ता है l
रह पाता है कोई सदा कब दुनिया…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on December 11, 2018 at 11:22am — 9 Comments
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