सरसी छन्द :
शिल्प :16,11 मात्राएँ चरणान्त गुरु+लघु
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प्रसंग : "धनुष यज्ञ" रामचरित मानस
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सुनें जनक के वचन लखन नें,उमड़ पड़ा आक्रोश ।।
दहल उठी थीं दसों दिशायें,देख लखन का जोश ।।
लगता ज्वालामुखी खड़ा हो,भरे हृदय में रोष ।।
या फ़िर जैसॆ प्रलय सामने,खड़ा हुआ ख़ामोश ।।
काँप उठी थी सभा समूची,नत भूपॊं की दृष्टि ।।
लगता सम्मुख खड़ा शेष अब,खा जाएगा सृष्टि ।।
भृकुटि तनीं भुजदण्ड फड़कते,रक्त…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on December 19, 2016 at 10:30pm — 12 Comments
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