221, 2121, 1221, 212
आरोप ये गलत है कि पुष्पित नहीं हुआ।
जीवन सरोज खिल के हाँ सुरभित नहीं हुआ।
छल, साम, दाम, दण्ड, कुटिलता चरम पे थी,
ऐसे ही कर्ण रण में पराजित नहीं हुआ।
कैसा ये इन्क़लाब है, बदलाव कुछ नहीं,
अम्बर अभी तो रक्त से रंजित नहीं हुआ।
गिरकर संभल रहे हैं, गिरे जितनी बार हम,
साहस हमारा आज भी खण्डित नहीं…
Added by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 4:00pm — 14 Comments
1212,1122,1212,22/112
तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।
हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।
चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,
ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।
वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,
ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।…
Added by Balram Dhakar on December 12, 2018 at 9:55pm — 14 Comments
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