हमने भी की इधर-उधर की बातें...
तुमने समझी इधर-उधर की बातें...
खो गये अर्थ वायदों के जब,
याद आयी इधर-उधर की बातें...
जब सरेआम चोरी पकडी गई,
फिर भी की इधर-उधर की बातें...
रोज वो ताश खेलने बैठें,
धूप करती इधर-उधर की बातें..
मुझ पे विश्वास कर महब्बत में,
छोड पगली इधर-उधर की बातें..
मौलिक व अप्रकाशित
Added by सूबे सिंह सुजान on December 22, 2017 at 8:57pm — 6 Comments
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