वो तेरे नखरे तुझे कुछ खास करते हैं
आज भी हम तो मिलन की आस करते हैं
इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं
बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी
ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं
बेवफाई कर नहीं सकता सनम मेरा
लोग यूँ ही आजकल बकवास करते हैं
कौन आगे बोलता है अब सितमगर के
बैठते हैं साथ में और लाश करते हैं
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Added by umesh katara on December 18, 2013 at 9:30am — 16 Comments
1222 1222
मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है
सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है
कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है
बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है
चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है
हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है
मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on December 10, 2013 at 3:30pm — 31 Comments
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