नया साल है आवा अस संजोग
ओ बी ओ मदिरायित हर्षित लोग
हवा भई है ‘बागी’ मन मुस्काय
‘योगराज’ शिव बैठे भस्म रमाय
‘प्राची’ ने दिखलाया आज कमाल
नए साल का सूरज निकसा लाल
ठहरा सा है मारुत ‘सौरभ’-भार
नवा ओज भरि लाये ‘अरुण कुमार’
‘राणा’–राव महीपति अरु ‘राजेश’
बदले बदले दिखते हैं ‘मिथिलेश’
तना खड़ा है अकडा अब ‘गिरिराज’
हर्ष न देह समाये इसके आज
कुहरे में है सूरज अरुणिम…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 31, 2017 at 2:30pm — 7 Comments
पार हुयी नहिं आसों, बीता साल
बिटिया अबहूँ क्वांरी. माँ बेहाल
विदा भई जनु बिटिया बीता साल
जैसे–तैसे कटिगा जिव जंजाल
बेसह न पायो कम्बर बीता साल
जाड़ु सेराई कैसे नटवरलाल ?
मिली न रोजी-रोटी, बेटवा पस्त
गए साल का अंतिम सूरज अस्त
बारह माह तपस्या, जमे न पाँव
आखिर में मुँह मोड़ा हारा दाँव
शीतल, सुरभित, नूतन आया साल
बधू चांद सी आयी जनु…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 30, 2017 at 2:33pm — 3 Comments
हिन्दी साहित्य में ‘बरवै’ एक विख्यात छंद है . इस छंद के प्रणेता सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक महाकवि अब्दुर्रहीम खानखाना 'रहीम' माने जाते हैं . कहा जाता है कि रहीम का कोई दास अवकाश लेकर विवाह करने गया. वह जब वापस आया तो उसकी विरहाकुल नवोढा ने उसके मन में अपनी स्मृति बनाये रखने के लिए दो पंक्तियाँ लिखकर उसे दीं-
नेह-छेह का बिरवा चल्यो लगाय I
सींचन की सुधि लीजो मुरझि न जायII
रहीम के साहित्य-प्रेम से तो सभी परिचित थे . अतः उस दास ने ये पंक्तियाँ रहीम…
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2017 at 9:00pm — 6 Comments
‘सर—---सर---‘, उसने हकलाते हुए कहा –‘सर, मेरे पास जवान, सुन्दर और हसीन लड़कियों की कोई कमी नहीं है. आप उनमे से किसी को चुन लें, पर भगवान् के लिए इस लडकी को छोड़ दें’- उसने बॉस से गिडगिडाते हुए कहा .
‘अच्छा !-----मगर इस लडकी में ऐसा क्या है जो तुम इस पर इतना मेहरबान हो ?’
‘दरअसल------दरअसल -----‘ उससे कहते न बना .
‘अरे बिदास कहो. हमसे क्या डरना ?’
‘सर, वह मेरी बेटी है‘ उसका हलक सूख गया . बॉस की आँखों में विस्मय भरी चमक आयी –‘ अरे ! तब तो यह नामुमकिन है कि हम इस जवान…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2017 at 8:58pm — 7 Comments
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