करके घायल ......
करके घायल नयन बाण से
मंद-मंद मुस्काते हो
दिल को देकर घाव प्यार के
क्योँ ओझल हो जाते हो
प्यार जताने कभी स्वप्न में
दबे पाँव आ जाते हो
कुछ न कहते अधरों से
बस नयनों से बतियाते हो
क्षण भर के आलिंगन को
तुम बरस कई लगाते हो
फिर आना का वादा करके
विछोह वेदना दे जाते हो
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 29, 2014 at 3:26pm — 14 Comments
अपने वज़ूद की ख़बर इस तरह हम देते हैं
मुट्ठी में रेत उठाकर हम हवा में उड़ा देते हैं
क्या हुआ जो इस उम्र में हम बे-समर हो गए
ये शज़र आज भी गुज़री बहारों की हवा देते हैं
अब हंसी भी लबों पे पैबंद सी नज़र आती हैं
जाने लोग आँखों में कैसे नमी को छुपा लेते हैं
रुख से चिलमन उठते ही नज़रें भी बहकने लगी
हम भी बेजुबानों की तरह पैमाने को उठा लेते हैं
जागते रहे तमाम शब् हम उसके इंतज़ार में
बार बार चरागों…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे
ख़ामोश थी खून की चीखें सभी
ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….
खूनी चेहरों के मंजर ने
हर धर्म का फर्क मिटा डाला
क्या अपना और बेगाना क्या
हर दुःख को अपना बना डाला
हर चेहरे पे इक दहशत थी
और सपनें सहमे सारे थे
ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र
ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….
बिखरे चूडी के टुकडों…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 12:02pm — 12 Comments
मौसम भी नीर बहायेगा …
भोर होते ही
चिड़ियों का कलरव
इक पीर जगा जाएगा
सांझ होते ही सूनेपन से
हृदय पिघल जाएगा
मुक्त- केशिनी का संबोधन
इक छुअन की याद दिलायेगा
बिना पिया के राह का हर पग
अब बोझिल हो जाएगा
निष्ठुर पवन का वेग भला
कैसे दीप सह पायेगा
रैन बनी अब हमदम तुम बिन
चिरवियोग तड़पायेगा
जाने जीवन के पतझड़ में
मधुमास कब आयेगा
अश्रु बूंदों से तब तक दिल का
स्मृति आँगन गीला हो जाएगा
प्राण प्रिय तुम प्राण…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2014 at 11:23am — 14 Comments
आभास हो तुम ........
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो
जिन मधु पलों को मौन भी तरसे
तुम उस पूर्णता का प्रयास नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी तृप्ति की प्यास नहीं हो .........
अतृप्त कामनाओं के स्वप्न नीड़ हो
अभिलाष कलश के विरह नीर हो
जिस प्रकाश को तिमिर भी तरसे
तुम उस जुगनू का प्रकाश नहीं हो
आभास हो तुम विश्वास नहीं हो
तुम रूठी…
Added by Sushil Sarna on December 2, 2014 at 1:30pm — 17 Comments
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