सांस भर की ज़िंदगी ...
वक़्त के साथ
हर शै अपना रूप
बदलती है
धूप ढलती है तो
छाया भी बदलती है
वक़्त के साथ
मोहब्बत की चांदी
केश वन में
चमकने लगी
उम्र की पगडंडियां
झुर्रियों में झलकने लगीं
वक़्त के साथ
यौवन का दम्भ
लाठी का मोहताज़ हो गया
दर्पण
आँख से नाराज़ हो गया
अनुराग
दर्द का राग हो गया
हदें
निगाहों से रूठ गयी
नफ़स
छटपटाई बहुत
आखिर
थककर टूट गयी…
Added by Sushil Sarna on December 27, 2017 at 6:37pm — 18 Comments
पीठ के नीचे ..
बेघरों के
घर भी हुआ करते हैं
वहां सोते हैं
जहां शज़र हुआ करते हैं
पीठ के नीचे
अक्सर
पत्थर हुआ करते हैं
ज़िंदगी के रेंगते सफ़र हुआ करते हैं
बेघरों के भी
घर हुआ करते हैं
भोर
मजदूरी का पैग़ाम लाती हैं
मिल जाती है मजदूरी
तो पेट आराम पाता है
वरना रोज की तरह
एक व्रत और हो जाता है
बहला फुसला के
पेट को मनाते हैं
तारों को गिनते हैं
ख़्वाबों में सो जाते हैं
मज़दूर हैं…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 7:00pm — 6 Comments
इक शाम दे दो ...
तन्हाई के आलम में
न जाने कौन
मेरे अफ़सुर्दा से लम्हों को
अपनी यादों की आंच से
रोशन कर जाता है
लम्हों के कारवाँ
तेरी यादों की तपिश से
लावा बन
आँखों से पिघलने लगते हैं
किसी के लम्स
मेरी रूह को
झिंझोड़ देते हैं
अँधेरे
जुगनुओं के लिए
रस्ते छोड़ देते हैं
तुम अरसे से
मेरे ज़ह्न में पोशीदा
इक ख़्वाब हो
मेरे सुलगते जज़्बात का
जवाब हो
अब सिवा तेरी आहटों के…
Added by Sushil Sarna on December 25, 2017 at 6:30pm — 6 Comments
कड़वाहट ....
जाने कैसे
मैंने जीवन की
सारी कड़वाहट पी ली
धूप की
तपती नदी पी ली
मुस्कुराहटों के पैबन्दों से झांकती
जिस्मों की नंगी सच्चाई पी ली
उल्फ़त की ढलानों पर
नमक के दरिया की
हर बूँद पी ली
रात की सिसकन पी ली
चाँद की उलझन पी ली
ख़्वाबों की कतरन पी ली
आगोश के लम्हों की
हर फिसलन पी ली
जानते हो
क्यूँ
शा.... य... द
मैं
तू.... म्हा ... रे
इ.... .श्......क
की…
Added by Sushil Sarna on December 17, 2017 at 8:30pm — 6 Comments
आग ..
सहमी सहमी सांसें
बेआवाज़ आहटें
खामोशियों के लिबास में लिपटे
कुछ अनकहे शब्द
पल पल सिमटती ज़िदंगी
जवाबों को तरसते
बेहिसाब सवाल
शायद
यही सब था
इस हयाते सफ़र का अंजाम
लम्हे ज़िदंगी से अदावत कर बैठे
ख़्वाब
आग के साथ सुलगने लगे
अभी तो जीने की आग भी
न बुझ पायी थी
कि मौत की फसल
लहलहाने लगी
इक हुजूम था
मेरे शेष को
अवशेष में बदलने के लिए
नाज़ था जिस वज़ूद पर
वो ख़ाक हो जाएगा
आग के…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2017 at 4:35pm — 8 Comments
जीने के लिए ...
जाने
कितनी दुश्वारियों को झेलती
ज़िंदगी
रेंगती हसरतों के साथ
खुद भी
रेंगने लगती है
हर कदम
जीने के लिए
ज़ह्र पीती है
हर लम्हा
चिथड़े -चिथड़े होते
आरज़ूओं के
पैबंद सीती है
जाने कब
वक़्त
ज़िंदगी की पेशानी पर
बिना तारीख़ के अंत की
एक तख़्ती
लगा जाता है
उस तख़्ती के साथ
ज़िंदगी रोज
मरने के लिए
जीती है
और
जीने के लिए
मरती है
सुशील सरना…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 6, 2017 at 1:25pm — 9 Comments
अचंभित हूँ ....
अचंभित हूँ
इस गहन तिमिर में भी
तुमने श्वासों के
आरोह-अवरोह को
महसूस कर लिया
अचंभित हूँ
तुमने कैसे मेरे
अबोले तिमित स्वरों को
पहचान लिया
और चुपके से
मेरे अंतर्भावों का
अपने नयन स्वरों से
शृंगार कर दिया
अचंभित हूँ
तुम कैसे मुझसे मिलने
हृदय की गहन कंदराओं में
मेरे अस्तित्व की प्रेमानुभूतियों से
अभिसार करने आ गए
मैं तो कब से
अस्तित्वहीन हो गयी थी…
Added by Sushil Sarna on December 6, 2017 at 1:00pm — 10 Comments
तेरे-मेरे दोहे - (२)
नर समझाये नार को, नार करे तकरार,
रार-रार में खो गया ,मधुर पलों का प्यार।१ ।
बिन तेरे पूनम सखा , लगे अमावस रात ,
प्रणय प्रतीक्षा दे गयी ,अश्कों की सौग़ात।२।
तेरी मीठी याद है ,इक मीठा अहसास,
रास न आये श्वास को, जीवन का मधुमास।३ ।
अवगुंठन में देह की ,स्पंदन हुए उदास,
दृगजल बन बहने लगी , अंतर्मन की प्यास।४ ।
मौन भाव को मिल गए ,स्पर्श मधुर आयाम ,
पलक नगर को दे गए, स्वप्न अमर…
Added by Sushil Sarna on December 4, 2017 at 5:30pm — 10 Comments
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