तीन क्षणिकाएं :
दूर होगई
हर बाधा
निजी स्वतंत्रता की
माँ-बाप को
वृद्धाश्रम
भेजकर
...................
रूकावट था
ईश मिलन में
अपनों का
मोह बंधन
देह दाह से
श्वास प्रवाह
मुक्त हुआ
अंश,
अंश में
विलुप्त हुआ
.........................
निकल पड़ी
पाषाणों से लड़ती
कल कल करती
निर्मल जल धार
हर रुकावट को रौंदती
मिलने
अपने सागर से
पाषाणों के
उस…
Added by Sushil Sarna on December 28, 2018 at 7:56pm — 6 Comments
विरासत ...
तुम
देर तक
ठहरे रहे
मेरे संग
बरसात में भीगते हुए
जो सोचा था
वो कह न सकी
जो कहा
वो सोचा न था
लबों की जुम्बिश से
यूँ लगता था जैसे
तुमने भी
मुझसे मिलकर
कुछ कहना था शायद
जो कह न सके
मेरी तरह
देर तक
तुम्हारी नज़रों के
लम्स
ख़ामोश अहसासात का
तर्ज़ुमा करते रहे
बरसात होती रही
अलफ़ाज़
इश्क की इबारत गढ़ते रहे
अपनी अपनी खामोशी में
हम…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 24, 2018 at 7:51pm — 4 Comments
बे-हया निशानी .....
हिज़्र की रातों में
तन्हा बरसातों में
खामोश बातों में
अश्कों की सौगातों में
मेरे नफ़्स में
साँसों के क़फ़स में
चांदनी बन कसमसाती
धड़कनों से बतियाती
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम हो
बारिशों के पानी में
प्यासी कहानी में
नादान जवानी में
लहरों की रवानी में
अंगड़ाई की बेचैनी में
लबों की निशानी में
सच, ओर कोई नहीं
सिर्फ, तुम ही तुम…
Added by Sushil Sarna on December 21, 2018 at 5:30pm — 8 Comments
दोहा संकलन :
नैन करें अठखेलियाँ, स्पर्श करें संवाद।
बाहुबंध में हो गए, अंतस के अनुवाद।१ ।
नैन शरों के घाव का ,अधर करें उपचार।
श्वास-श्वास में खो गयी,स्पर्श हुए साकार।२ ।
नैन विरह में प्रीत के ,बरसे सारी रात।
गूँगे स्वर करते रहे, मौन पलों से बात।३ ।
अद्भुत पहले प्यार का, होता है आनंद।
देह-देह में रागिनीं , श्वास -श्वास मकरंद।४ ।
केशों में जूही सजे , महके हरसिंगार।
नैनों की हाला करे,…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2018 at 5:12pm — 10 Comments
देर तक ....
तुन्द हवाएँ
करती रही खिलवाड़
हर पात से
हर शाख से
देर तक
रोती रही
बेबस चिड़िया
टूटे अण्डों के पास
देर तक
हो गई शान्त
हवाएँ
प्रकृति से
अपना खिलवाड़ करके
हो गया शान्त
रुदन
चिड़िया का
कुछ न समझ सकी
खेल विधाता का
सृजन से पूर्व संहार
क्या यही है
संसार
बस देखती रही
बिखरे तिनके
टूटे अंडे
स्वप्न के अवशेष
देर तक
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 12, 2018 at 7:30pm — 6 Comments
रंगहीन ख़ुतूत ...
तन्हाई
रात की दहलीज़ पर
देर तक रुकी रही
चाँद
दस्तक देता रहा
मन
उलझा रहा
किसका दामन थामूँ
अर्श के माहताब का
पलकों के ख्वाब का
या ज़ह्न के सैलाब का
सवाल
गर्म लावे से
उबलते रहे
जवाब
तन्हाई में
सुबकते रहे
मैं ज़ीना-ज़ीना
ज़ह्न के सन्नाटों में
उतरती रही
अपनी ही साये में
बिखरती रही
बस रहे गए हाथ में
अर्थहीन अलफ़ाज़ के
रंगहीन ख़ुतूत…
Added by Sushil Sarna on December 10, 2018 at 2:00pm — 8 Comments
दो क्षणिकाएं :
पिघल गयी
दे कर आघात
बेदर्दी याद
......................
ढाया कह्र
आफ़ताब ने
ओस की बूँद पर
बिखर गई रेज़ा-रेज़ा
तन्हा-तन्हा
रोया गुलाब
.....................
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 7, 2018 at 8:56pm — 10 Comments
ख़्याल ...
मैं सो गयी
इस ख़्याल से
कि तेरा ख्याल भी
साथ मेरे सो जाएगा
मगर
तेरा ख़्याल
तमाम शब्
मेरी नींदों से
खिलवाड़ करता रहा
मैं उनींदी सी सोयी रही
उसके लम्स
मेरे ज़ह्न को
झिंझोड़ते रहे
अंततः
सौंप दिया स्वयं को
ख़्याल बनके
उस ख़्याल के हवाले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on December 5, 2018 at 6:54pm — 3 Comments
३ क्षणिकाएँ ...
छोटी सी बात
साँय-साँय करती रात
स्मृति पटल को दे गई
अमर
स्पर्श
सौग़ात
........................
व्योम
शून्यता के पर्याय के अतिरिक्त
आश्रय स्थल भी है
उन स्मृतियों का
जो जीती हैं
मिट कर भी
अंत से अनंत तक
.....................................
भला घर
खंडहर में
तब्दील कब होते हैं
जब तक
Added by Sushil Sarna on December 3, 2018 at 7:00pm — 8 Comments
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