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विनय कुमार's Blog – December 2017 Archive (2)

कशमकश--लघुकथा

अजीब सी कशमकश में गुजर रहे थे हरी बाबू पिछले एक हफ्ते से, एक तरफ उनके खुद के विचार तो दूसरी तरफ एक छोटी सी चीज पर उनकी असहमति| बेटी अर्पिता पिछले दो साल से नौकरी में थी और उन्होंने कह रखा था कि या तो खुद ही शादी कर लो या जहाँ मन हो बता देना, शादी कर देंगे| लेकिन अपने उदार सोच और प्रगतिशील विचारों के बावजूद एक छोटी सी बात वह चाह कर भी किसी से नहीं कह पाए थे|

वैसे तो उनके सभी मज़हब और जातियों के दोस्त थे और उन्होंने कभी उनमें फ़र्क़ भी नहीं किया| लेकिन पिछले कई वर्षों से धर्म के आधार पर हो…

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Added by विनय कुमार on December 20, 2017 at 6:30pm — 4 Comments

पिंजरा--लघुकथा

जैसे ही आशिया घर में घुसी उसे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ आयी. चारो तरफ देखते हुए उसकी नज़र किनारे मेज पर रखे एक पिंजरे पर पड़ी जिसमें कई सारे रंगीन पक्षी कूद फांद कर रहे थे. उसने उछलते हुए पिंजरे की तरफ रुख किया और जब तक वह पिंजरे के पास पहुंचती, सामने से अब्बू आते दिखे.

"कितने प्यारे पक्षी हैं न आशिया, तुम्हारे लिए ही लाये हैं मैंने", अब्बू ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.

आशिया ने हँसते हुए अब्बू को शुक्रिया कहा और पिंजरे के पास खड़ी हो गयी. एक से एक खूबसूरत और प्यारे पक्षी, उसे लगा…

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Added by विनय कुमार on December 14, 2017 at 6:12pm — 12 Comments

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