गरीब का पेट
बड़ा जालिम होता है
गरीब का पेट
नहीं देता देखने
सुन्दर-सुन्दर सपने
गरीबी के दिनों में
छीन लेता है वह
सपना देखने का हक
जब कभी
देखना चाहती है आंख
सुंदर सा सपना
मागने लगता है पेट
एक अदद सूखी रोटी
आंख ढूंढ ने लगती है तब
इधर उधर बिखरी जूठन
और फैल जाते हैं हाथ
मागने को निवाला
गरीबी के दिनों में
दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ
सपना देखती आंख के
मददगार नहीं होते…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2013 at 6:30am — 10 Comments
हैं कपड़े साफ सुथरे से , पड़ा काँधे दुशाला है
शहर में भेडि़यों ने आ, बदल अब रूप डाला है
कहानी रोज पापों की, उघड़ कर सामने आती
किसी ने झूठ बोला था, ये दुनिया धर्मशाला है
समझ के आम जैसे ही, आमजन चूसे जाते नित
बनी ये सियासत अब, महज भ्रष्टों की खाला है
मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को
है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है
किया सुबह शाम झगड़ा , रखी वाणी में दुत्कारें
'मुसाफिर'…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2013 at 7:30am — 13 Comments
2112 2112 2112 112
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दाग चंदा को लगे हैं, सूरज का क्या गया
ढूँढ लेगा रात को वो, फिर से कोई घर नया
बादलों को थी मनाही , कैसे करते बारिसें
उसके सूखे दामनों पर, आँसुओं ने की दया
कौन बोले, किसको बोले, इस सियासत में बुरा
सब हमामों के चरित्तर, शेष किसमें है हया
बाज के थे सहायक चील , कौवे औ’ उलूक
फिर अकेली बाज से, कब तलक लड़ती बया
सोच…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:00am — 8 Comments
1221 1221 1221 121
हमेशा राह में नदियों, बिछे पत्थर नहीं होते
मिला वनवास जिनको हो, उनके घर नहीं होते
.
किसी से बावफा तो, किसी से बेवफा क्यों दिल
कभी इन सवालों के, कोई उत्तर नहीं होते
.
कभी चलके, कभी तर के, जहाँ घूम लेते हैं
परिन्दे जिनके उड़ने को, वदन पे पर नहीं होते
.
चला देते हैं झट खन्जर, नीदों में भी साये पे
ये ना समझो जहन में कातिलों के डर नहीं होते
.
गर जीना हो भोलापन, रहो भीड़ से…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 11:00am — 11 Comments
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