गीत-१०
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सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
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कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
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दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
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माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments
( गीत -९)
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हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
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धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
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अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
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शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
गीत-८
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कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।
पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।
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वेदना के बीज से ही, जन्म लेता है सुखद क्षण।
जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।
कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।
मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।
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ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।
प्राण रहते पूछने पर, एक पल भी वह न आती।।
कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।
शेष करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments
किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
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तितली फूल हवा को भी है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
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फागुन गाये फाग भला क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
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तपते सूरज से विनती की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments
रूठ रही नित गौरय्या भी, देख प्रदूषण गाँव में।
दम घुटता है कह उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
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बीते युग की बात हुए हैं
घास-फूँस औ' माटी के घर।
सूने - सूने, फीके - फीके
खेतों खलिहानों के मञ्जर।।
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अन्तर जैसे पाट दिया है, आज नगर औ' गाँव में।
दम घुटता है अब उपवन की, छितरी-छितरी छाँव में।।
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शेष हुए हैं देशी व्यञ्जन,
और विदेशी रीत हुए।
तीजों - त्यौहारों से गायब,
परम्परा के गीत हुए।।
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लगता जैसे आन बसे हों, किसी विदेशी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2022 at 6:45am — 6 Comments
सोचा था हो बच्चा मन
लेकिन पाया बूढ़ा मन।१।
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नीड़ सरीखा आँधी में
तिनका तिनका टूटा मन।२।
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किस दामन को भाता है
सारी रात बरसता मन।३।
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तन की मंजिल पास हुई
मीलों लम्बा रस्ता मन।४।
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शूल चुभा सब कहते हैं
मत रख पत्थर जैसा मन।५।
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पीर अगर नाचे आँगन में
तब किसका घर होगा मन।६।
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कहकर कितना रोयें अब
दुख में भी मुस्काता मन।७।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2022 at 8:00am — 9 Comments
१२२२/ १२२२/१२२२
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कठिन जैसे नगर में धूप के दर्शन
हमें वैसे तुम्हारे रूप के दर्शन।१।
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कभी वो नीर का साधन रहा होगा
मगर होते नहीं अब कूप के दर्शन।२।
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सुना है नृत्य करते हैं तेरे आँगन
बहुत दुर्लभ हमें तो भूप के दर्शन।३।
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कभी थोथा उड़ा कर सार गहते थे
नये युग में गुमें हैं सूप के दर्शन।४।
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जलन दूजे से होती हो जहाँ बोलो
किसी मुख पर हो कैसे ऊप के दर्शन।५।
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यहाँ रूठी हुई छत नींव बागी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 1, 2022 at 12:30pm — 6 Comments
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