माँ .....
सुनाता हूँ
स्वयं को
मैं तेरी ही लोरी माँ
पर
नींद नहीं आती
गुनगुनाता हूँ
तुझको
मैं आठों पहर
पर
तू नहीं आती
पहले तो तू
बिन कहे समझ जाती थी
अपने लाल की बात
अब तुझे क्यूँ
मेरी तड़प
नज़र नहीं आती
मेरे एक-एक आँसू पर
कभी
तेरी जान निकल जाती थी माँ
अब क्यूँ अपने पल्लू से
पोँछने मेरे आँसू
तू
तस्वीर से
निकल नहीं…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 12, 2019 at 8:27pm — 4 Comments
वो ईश तो मौन है ...
नैनों के यथार्थ को
शब्दों के भावार्थ को
श्वास श्वास स्वार्थ को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
रिश्तों संग परिवार को
छोरहीन संसार को
नील गगन शृंगार को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
अदृश्य जीवन डोर को
सांझ रैन और भोर को
जीवन के हर छोर को
अलंकृत करता कौन है
वो ईश तो मौन है
कौन चलाता पल पल को
कौन बरसाता बादल को
नील व्योम के आँचल को…
Added by Sushil Sarna on October 11, 2019 at 6:23pm — 2 Comments
रिक्तता :.....
बहुत धीरे धीरे जलती है
अग्नि चूल्हे की
पहले धुआँ
फिर अग्नि का चरम
फिर ढलान का धुआँ
फिर अंत
फिर नहीं जलती
कभी बुझकर
राख से अग्नि
साकार
शून्य हो जाता है
शून्य अदृश्य हो जाता है
बस रह जाती है
रिक्तता
जो कभी पूर्ण थी
धुआँ होने से पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 9:26pm — 8 Comments
विजयदशमी पर कुछ दोहे :
राम शरों ने पाप को, किया धरा से दूर।
दम्भी रावण का हुआ, दम्भ अंत में चूर।1।
हाथ जोड़ वंदन करें , कहाँ राम हैं आप।
प्रतिपल बढ़ते जा रहे ,हर सत्या पर पाप।2।
छद्म वेश में घूमते, जगह जगह लंकेश।
नारी को वो छल रहे, धर कर मुनि का वेश।3।
राम नाम के दीप से, हो पापों का अंत।
मन से रावण दूर हो ,उपजे मन में कंत।4।
जीवन में लंकेश सा, जो भी करता काम।
ऐसे पापी को कभी , क्षमा न करते…
Added by Sushil Sarna on October 8, 2019 at 11:48am — 12 Comments
अपना भारत.... (लघु रचना)
हार गई
लाठी से
बन्दूक
आख़िर
जीत गई
बापू की अहिंसा
हिंसा से
मुक्ति दिलाई
गुलामी की
बेड़ियों से
तिरंगे को मिला
अपना आसमान
अपना सम्मान
अपना भारत
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 2, 2019 at 9:52pm — 4 Comments
कुछ क्षणिकाएँ :
ख़ामोश जनाज़े
करते हैं अक्सर
बेबसी के तकाज़े
ज़माने से
..........................
सवालों में उलझी
जवाबों में सुलझी
अभिव्यक्ति की तलाश में
बीत गयी
ज़िंदगी
.................................
कोलाहल
ज़िंदगी का
डूब जाता है
श्वासहीन एकांत में
...................................
देकर
एक आदि को अंत
लौटते हुए
सभी खुश थे अंतस में
लेकर ये भ्रम…
Added by Sushil Sarna on September 25, 2019 at 7:00pm — 12 Comments
हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :
फल फूल रही है
हिंदी के लिबास में
आज भी
अंग्रेज़ी
वर्णमाला का
ज्ञान नहीं
शब्दों की
पहचान नहीं
क्या
ये हिंदी का
अपमान नहीं
शोर है
ऐ बी सी का
आज भी
क ख ग के
मोहल्ले में
शेक्सपियर
बहुत मिल जायेंगे
मगर
हिंदी को संवारने वाले
प्रेमचंद हम
कहाँ पाएँगे
हम आज़ाद
फिर हिंदी क्यूँ
हिंग्लिश की…
Added by Sushil Sarna on September 16, 2019 at 4:07pm — 10 Comments
क्षणिकाएँ ....
लील लेती है
एक ही पल में
कितने अंतरंग पलों का सौंदर्य
विरह की
वेदना
...............
उड़ती रही
देर तक
खिन्न सी एक तितली
मृदा में गिरे
मृत पुष्प में
जीवन ढूँढती
..........................
कह रहे थे दास्ताँ
बेरहम आँधियों की
बिखरे तिनके
घौंसलों के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 30, 2019 at 7:10pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on August 24, 2019 at 6:30pm — 2 Comments
ऐ हवा .............
कितनी बेशर्म है
इसे सब खबर है
किसी के अन्तःकक्ष में
यूँ बेधड़क चले आना
रात की शून्यता में
काँच की खिड़कियों को बजाना
पर्दों को बार बार हिलाना
कहाँ की मर्यादा है
कौमुदी क्या सोचती होगी
क्या इसे ज़रा भी लाज नहीं
इसका शोर
उसे मुझसे दूर ले जायगा
मेरा खयाल
मुझसे ही मिलने से शरमाएगा
तू तो बेशर्म है
मेरी अलकों से टकराएगी
मेरे कपोलों को
छू कर निकल जाएगी
मेरे…
Added by Sushil Sarna on August 23, 2019 at 7:00pm — 4 Comments
चले आओ .....
जाने कौन
बात कर गया
चुपके से
दे के दस्तक
नैनों के
वातायन पर
दौड़ पड़ा
पागल मन
मिटाने अपने
तृषित नैनों की
दरस अभिलाषा
पवन के ठहाके
मेरे पागलपन का
द्योतक बन
वातायन के पटों को
बजाने लगे
अंतस का एकांत
अभिसार की अनल को
निरंतर
प्रज्वलित करने लगा
कौन था
जिसका छौना सा खयाल
स्पर्शों की आंधी बन
मेरी बेचैनियों को…
Added by Sushil Sarna on August 21, 2019 at 12:56pm — 2 Comments
तिरंगे तुझे सुनानी है ....
सन ४७ की रात में
आज़ादी की बात में
दर्दीले आघात में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के शोलों में
रंग बसन्ती चोलों में
जय हिन्द के बोलों में
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
राजगुरु सुखदेव भगत
और मंगल पण्डे लक्ष्मी बाई
गाँधी शेखर और शिवा की
छुपी जो एक कहानी है
तिरंगे तुझे सुनानी है
आज़ादी के दीवानों की
सरहद के जवानों की…
Added by Sushil Sarna on August 16, 2019 at 6:44pm — 2 Comments
संतान (क्षणिकाएं ) ....
बुझ गए बुजुर्ग
करते करते
रौशन
अपने ही चिराग
.....................
कर रही
वृक्षारोपण
वृद्धाश्रम में
वृद्धों की हाथों
उनकी ही संतान
.......................
हो गया
संस्कारों का
दाहसंस्कार
मौन बिलखता रहा
कहकहों में
संतान के
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 8, 2019 at 12:57pm — 6 Comments
अभिव्यक्ति का संत्रास ...
वरण किया
आँखों ने
यादों का ताज
पूनम की रात में
होती रही स्रावित
यादें
नैन तटों से
अविरल
तन्हा बरसात में
वीचियों पर
यादों की
तैरती रही
परछाईयाँ
देर तक
तन्हा अवसाद में
कर न सके व्यक्त
अधरों से
अन्तस् के
सिसकते जज्बातों की
अव्यक्त अभिव्यक्ति का संत्रास
शाब्दिक अनुवाद में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 6, 2019 at 5:06pm — 10 Comments
वो मेरा था तारा ...
यादों के बादल से
नैनों के काजल से
लहराते आँचल से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
महकती फिजाओं से
परदेसी हवाओं से
बरसाती राहों से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
सपनों के अम्बर से
खारे समंदर से
मन के बवंडर से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था तारा
यादों के नीड से
महकते हुए चीड से
ख्वाबों की भीड़ से
जिसने पुकारा
वो
मेरा था…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2019 at 3:35pm — 6 Comments
चंद हाइकु ...
संग दामिनी
धक-धक धड़के
प्यासा दिल
तड़पा गई
विगत अभिसार
बैरी चपला
लुप्त भोर
पयोद घनघोर
शिखी का शोर
छुप न पाया
विरह का सावन
दर्द बहाया
खूब नहाई
रूप की अंगड़ाई
रुत लजाई
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 3, 2019 at 5:07pm — 4 Comments
ले बाहों में सोऊँगी ....
सावन की बरसात को
प्रथम मिलन की रात को
धड़कते हुए जज़्बात को
संवादों के अनुवाद को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
अपनी प्रेम कहानी को
भीगी हुई जवानी को
बारिश की रवानी को
नैन तृषा दिवानी को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना खोऊँगी
उस नशीली रात को
उल्फ़त की बरसात को
अजनबी मुलाक़ात को
हाथों में थामे हाथ को
ले बाहों में सोऊँगी
अस्तित्व अपना…
Added by Sushil Sarna on August 2, 2019 at 5:19pm — 4 Comments
कैसे भूलें हम ....
पागल दिल की बात को
सावन की बरसात को
मधुर मिलन की रात को
अधरों की सौगात को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतर्मन की प्यास को
आती जाती श्वास को
भावों के मधुमास को
उनसे मिलन की आस को
बोलो
कैसे भूलें हम
नैनों के संवाद को
धड़कन के अनुवाद को
बीते पलों की याद को
तिमिर मौन के नाद को
बोलो
कैसे भूलें हम
अंतस के तूफ़ान को
धड़कन की पहचान को
अधरों की…
Added by Sushil Sarna on July 31, 2019 at 12:38pm — 4 Comments
मेरा प्यारा गाँव:(दोहे )..............
कहाँ गई पगडंडियाँ, कहाँ गए वो गाँव।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।1।
सूखे पीपल से नहीं, मिलती ठंडी छाँव।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।2।
जंगल में कंक्रीट के , दफ़्न हो गए गाँव।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।3।
घर मिट्टी का ढूंढते, भटक रहे हैं पाँव।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गई वो ठाँव।4।
चैन मिले जिस छाँव में, कहाँ गयी वो ठाँव।
मुझको…
Added by Sushil Sarna on July 29, 2019 at 2:00pm — 7 Comments
प्रीत भरे दोहे .....
अगर न आये पास वो, बढ़ जाती है प्यास।
पल में बनता प्रीत का , सावन फिर आभासll
छोड़ो भी अब रूठना , सावन रुत में तात।
बार बार आती नहीं ,भीगी भीगी रात।।
नैन नैन को दे गए , गुपचुप कुछ सन्देश।
अन्धकार में देह से , हुआ अनावृत वेश। ।।
यौवन की नादानियाँ , सावन के उन्माद।
अंतस के संवाद का ,अधर करें अनुवाद।।
याचक दिल की याचना , दिल ने की स्वीकार।
बंद नयन में हो गया , अधरों का…
Added by Sushil Sarna on July 24, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
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