221/2121/1221/212
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सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर
नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।
*
उर्वर करेगा कोई तो फिर से ये सोच बस
सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।
*
कीटों के प्रेत नोच के हर शब्द ले गये
रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।
*
पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम
नफरत के दौर प्यार के तेवर सँभालकर।४।
*
फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा
जिस ने रखा है हाथ में…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
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ये सच नहीं कि रूप से वो भा गयी मुझे
बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।
*
सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर
कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।
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दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर
रिश्तों की ढाल भेद के झुलसा गई मुझे।३।
*
अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे
पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।
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नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ
दो एक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments
२२२२ २२२२ २२२२ २
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पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद
हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा चाँद।१।
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आस नयी जब लिए अटारी झाँका होगा चाँद
मन कहता है झुँझलाहट से बिफरा होगा चाँद।२।
*
हम होते तो कोशिश करते बात हमारी और
शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद।३।
*
चाँद बिना हम यहाँ नगर में जैसे काली रात
अबके पूनौ हम बिन भी तो आधा होगा चाँद।४।
*
बातें करती होगी बैठी याद हमारी पास
कैसे कह दें तन्हाई में तन्हा होगा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2023 at 12:33pm — 4 Comments
२२/२२/२२/२
*
कुछ हो मत हो नेता दिख
मुख से निकला वादा दिख।१।
*
दुनिया को गर खुश रखना
उसके हित बस खटता दिख।२।
*
शीष नवायें सब तुझ को
इच्छा है तो दादा दिख।३।
*
लोकतन्त्र की रीत निभा
राजा होकर जनता दिख।४।
*
खबरों में गर आना है
नियमित से बस उल्टा दिख।५।
*
भीड़ जुटानी अगल बगल
जीने से बढ़ मरता दिख।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments
२२२२/ २२२२
जब दंगों का मंजर देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो मानव जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख तब से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments
जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।
देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।
*
पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।
मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।
राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।
भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।
*
सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।
स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।
*
भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।
इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments
हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।
हो जाता है इस से जग में, देश हमारा नंगा।।
एक साथ में रहते देखो, बीतीं कितनी सदियाँ।
फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।
*
क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।
क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।
जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।
झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।
*
वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments
कोई भी नेता हमारा वादे का सच्चा नहीं
घोषणा करता मगर कुछ लोक को देना नहीं।१।
*
हर बहस के पीछे केवल कुर्सियों की टीस है
शेष सन्सद में हमारे हित कोई झगड़ा नहीं।२।
*
बस चुनावी वक्त में ही रात दिन चर्चा में हम
शेष वर्षों में हमीं को उन का दिल धड़का नहीं।३।
*
लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ
भीड़ में भी बोलिए तो कौन अब तन्हा नहीं।४।
*
विष घुली नदिया सा जीवन कर के नेता चैन में
लोक उनके आचरण को क्यों भला समझा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2023 at 5:48am — 4 Comments
यह तन जो साँसों का घर है।
टूटेगा ही, जब नश्वर है।।
*
साँस महज है पवन डोलती।
तन रहने तक समय तोलती।।
केवल मन की हमजोली बन,
तन को उकसा द्वार खोलती।।
*
कच्ची स्याही, कच्चा कागज,
मिटने वाला हस्ताक्षर है।
*
अभिलाषा पर अभिलाषा गढ़।
मन बढ़ जाता, तन सीने चढ़।।
उस पर भी कर सीनाजोरी,
सब दोषों को तन पर दे मढ़।।
*
मन के कर्मों का अपराधी,
तन हो जाता यूँ ऊसर है।।
*
सतरंगी चञ्चलता मन की।
सह ना पाती जड़ता तन…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2023 at 5:52pm — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
पढ़ लिख गये हैं और जहालत के दिन गये
लेकिन इसी के साथ रिवायत के दिन गये।१।
*
जितने भी संगदिल थे तराशे गये बहुत
लेकिन न इतने भर से कयामत के दिन गये।२।
*
हर छोटी बात अब तो है तकरार का विषय
इस से समझ लो आप मुहब्बत के दिन गये।३।
*
साया गया जो बाप का क्या कुछ छिना न पूछ
उस की समझ खुली है शरारत के दिन गये।४।
*
बाँटा गया अनाज यूँ दो- चार - दस किलो
उस पर कहन कि आज से गुरबत के दिन गये।५।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 7:30pm — 2 Comments
आँगन में जब शूल के, हँसते हों नित फूल
अच्छे दिन का आगमन, समझो है अनुकूल।।
*
सुख चलते हों नित्य जब, लेकर टूटे पाँव
रंगत कैसे प्राप्त हो, अभिलाषा के गाँव।।
*
दुख की तपती धूप में, जलते सुख के पाँव
कैसे फिर बोलो मिले, अभिलाषा को छाँव।।
*
गिरकर भी सँभले नहीं, जो भी जन सौ बार
कब ईश्वर भी कर सके, आ उन का उद्धार।।
*
जीया मीठी बातकर, जो जीवन पर्यन्त
या तो वो शातिर बहुत, या फिर सीधा सन्त।।
*
मौलिक -अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 3:42pm — No Comments
जीवन दाता ने रचा, जीवन बड़ा अनन्त
मिट्टी से आरम्भ कर, मिट्टी से दे अन्त।१।
*
मिट्टी में उपजे फसल, भरे सभी का पेट
मिले इसी से जिन्दगी, मिट्टी को मत मेट।२।
*
मिट्टी बढ़कर स्वर्ण से, सदा लगाओ भाल
केवल मिट्टी ही यहाँ , सब को सकती पाल।३।
*
जन्म, ब्याह, पूजा, मरण, कर मिट्टी की बात
कहते फिर भी लोग नित, घट मिट्टी की जात।४।
*
मिट्टी को घट बोलकर, रखते स्वर्ण सँभाल
पर मिट्टी को ही चलें, जग में चाल कुचाल।५।
*
करते पंछी पेड़ सब, मिट्टी का…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2023 at 8:31pm — No Comments
जो भी घटता घाट पर, सिर्फ समय का खेल
बाँकी जो भी जन करें, सब कुछ तुक का मेल।१।
*
कहता है सारा जगत, समय बड़ा बलवान
इसीलिए वह माँगता, हरपल निज सम्मान।२।
*
चाहे जितना आप दो, दौड़ भाग को तूल
कर्म जरूरी है मगर, फले समय अनुकूल।३।
*
जो भी छाया धूप है, या फिर कीर्ति कलंक
समय बनाता भूप है, और समय ही रंक।४।
*
सच कहते हैं सन्त जन, नहीं समय से खेल
समय करेगा खेल जब, नहीं सकेगा झेल।५।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2023 at 6:50pm — 2 Comments
जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।
फूँका उन के कान में, तम ने कैसा मंत्र।१।
*
जीवनभर बैठे रहे, जो नदिया के तीर।
भाँणों ने उनको लिखा, मझधारों के वीर।२।
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करती हो पतवार जब, दुश्मन सा व्यवहार।
कौन करे उम्मीद फिर, नाव लगेगी पार।३।
*
दुख के अपने रंग हैं, दुख की अपनी चाल।
जिसके चंगुल में हुए, जग में सभी निढाल।४।
*
लूले-लँगड़े सुख सकल, साध रहे नित मौन।
आगे बढ़कर फिर भला, दुख को कुचले कौन।५।
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दुख के जनपद हैं बहुत, सुख…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2023 at 10:25pm — 2 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
*
अब न काली रातों में ही चूमती फिरती है लब
भोर में भी यह उदासी चूमती फिरती है लब।१।
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वो जमाना और था जब प्यार था पर्दानशीं
आज तो हर बेहयायी चूमती फिरती है लब।२।
*
जेब खाली की न घर में पूछ होती आजकल
धन मिले तो स्वर्ग दासी चूमती फिरती है लब।३।
*
मोल रोटी का उसी को हम से बढ़कर ज्ञात है
नित्य जिसके सिर्फ बासी चूमती फिरती है लब।४।
*
हर थकन से मुक्ति पाती देह जर्जर आज भी
जब गले लग झट से बच्ची…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 11:00am — 2 Comments
माँ का आँचल बाल को, सदा सुरक्षा ढाल
टलता जिसकी छाँव में, आया संकटकाल।१।
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हीरे, मोती, स्वर्ण का, रख कितना भी तोल
माँ की ममता का नहीं, पास किसी के मोल।२।
*
माँ के आँचल के तले, मिलती ऐसी छाँव
हर्षित होकर नाचता, हर दुखियारा गाँव।३।
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चाहे मन से हो स्वयं, माँ यूँ बहुत उदास
बच्चों को देती मगर, सदा खुशी की आस।४।
*
अपने सब दुख भूलकर, देती सबको हर्ष
माता जीवन नींव है, माता ही उत्कर्ष।५।
*
रग-रग में माँ के भरे, ममता, करुणा,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2023 at 10:10pm — 2 Comments
थकन भले ही देह में, किन्तु न माने हार
स्वर्ग श्रम से नित करे, वह नीरस संसार।१।
*
लहू देह से बन बहे, जिसके पलपल स्वेद
जग में बाँटे हर्ष जो, सब से लेकर खेद।२।
*
कर्मलीन जो हर समय, दिवस रात्रि में जाग
जगने देते पर नहीं, शोषक उस का भाग।३।
*
श्रम से उस के हो गये, चन्द लोग धनवान
जिसकी हालत को कहे, जग दोषी भगवान।४।
*
हिस्से में ले जी रहा, भले भूख मजदूर
गाली, लाठी, गोलियाँ, मिलें उसे भरपूर।५।
*
गुजर किया मजदूर ने,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 30, 2023 at 11:50am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
*
बातों में सिर्फ देश का उद्धार हो रहा
बाँकी स्वयं के वास्ते व्यापार हो रहा।१।
*
चमकेगी उनकी और सियासत पता उन्हें
बेवश युवा यहाँ का जो मिस्मार हो रहा।२।
*
कीमत बढ़े ही जा रही हर एक चीज की
निर्धन का जीना रोज ही दुश्वार हो रहा।३।
*
कुर्सी पे जब से बैठे हैं ईमानदार ढब
नेता वतन का और भी मक्कार हो रहा।४।
*
आँधी चली है देश में कैसी विकास की
लाचार अब तो और भी लाचार हो रहा।५।
*…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 28, 2023 at 9:55pm — 2 Comments
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 27, 2023 at 9:03pm — 4 Comments
रोशनी उस पार बेढब नित दिखाती खिड़कियाँ
काश नन्ही भोली चिड़िया खोल पाती खिड़कियाँ/१
*
है नहीं कोई उबासी सोच पर हावी सनम
ताजगी का एक झोंका नित्य लाती खिड़कियाँ/२
*
दूर पथ पर चाँद बढ़ता हसरतों से देखना
याद का झोंका लिए यूँ याद आती खिड़कियाँ/३
*
इस हवा को बात कोई कर रही बेचैन क्या
द्वार के ही साथ जो ये खटखटाती खिड़कियाँ/४
*
ढूँढ लेना छाँव पन्छी पेड़ की इक डाल पर
दोपहर की धूप से जब कुम्हलाती खिड़कियाँ/५
*
कर दिया जर्जर समय ने ओढ़ ली हर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2023 at 10:24pm — No Comments
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