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VIRENDER VEER MEHTA's Blog (52)

ठूंठ होते गांव - लघुकथा

"ठीक है पिताजी। मान लो आप कि मैं नास्तिक हूँ और रीति रिवाज नही मानता।" बेटे ने सजल आँखो से कहा।

"बेटा। एक तुम्हारे ना मानने से समाज के रिवाज खत्म नही हो जायेगें।" व्यथित मन से पिता ने जवाब दिया।

"जानता हूँ नही खत्म होगें। लेकिन इस कठोर परम्परा के लिए हर दिन पेड़ो से काटी जाने वाली लकड़ी के कारण ठूंठ होते गांव में एक नई परम्परा की शुरूआत तो हो सकती है।" कहते हुये बेटे ने रूंधे लेकिन कड़े मन से गांव में पहली बार मगांयी गयी बिजली शव दाह घर की गाडी में अपनी पत्नि के शव को ले जाने की तैयारी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 4:18pm — 3 Comments

" प्यार " - लघु कथा

"नही! मैं नही करती तुमसे प्यार।" यही कहा था मैंने उस दिन इसी जगह पर, ऐसी ही किसी शाम में।

"करने लगोगी, शादी के बाद।" तुम हॅस पड़े थे।

और फिर चंद हफ्तो बाद ही मैं दुल्हन बनी तुम्हारे घर आ गयी। उसके बाद जब भी तुमने ये सवाल किया मैं चुप रही, अब मन की बात नही बोल सकती थी न। और फिर एक दिन निकल गयी तुम्हारे जीवन से। 'उसी के' साथ जिससे 'मैं' प्यार करती थी।............

..........जल्दी ही लौट आयी थी मैं, उसके प्यार का जहर पीकर पर देर हो चुकी थी उसने मुझसे 'मनचाहा' पा कर मुझे छोड़ दिया…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 10:00am — 10 Comments

नैतिक बुनियाद (लघुकथा)

"अरे! कमलजी आप यहां 'जाॅब' कर रहे है, सरकारी 'रिटायरमेन्ट' के बाद फिर से।" अरूणजी एक निजी कम्पनी में कमलजी से मिलने पर कुछ हैरत से बोले।

"हाँ भाई। अभी कुछ जिम्मेदारियाँ शेष रह गयी है, पूरी तो करनी ही पड़ेगी ना। कमल जी धीरे से हॅसकर बोले।

"अब कमल बाबु इसमें मे भी दोष आपका ही है, यदि आप हमारे कहे से चले होते है तो आर्थिक बुनियाद का खोखलापन आपको छूता भी नही।" अरूण जी अर्थपूर्ण मुस्कराहट से बोले।

"मेरा ये खोखलापन तो देर सवेर भर ही जायेगा अरूण भाई.....।"

"लेकिन आप जैसे लोगो के… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 6, 2015 at 10:09am — 10 Comments

दामन

"शाह जी आज़ तीन-चार पूड़े (पुड़िया) वादु (अधिक) देना।" महिन्द्रा दबी आवाज में बोला।

"क्यों ज्यादा किस लिये?" सर्फुल्ला कुछ आशंकित हो गया।

"ओ शाहजी, पिंड दे कोलेज विच वी थोड़े मुन्डे होर सैट किते ने, नशे लई।"(गाँव के काॅलेज में भी कुछ लड़के और तैयार किये है नशे के लिये) महिन्द्रा इधर उधर देखकर बोला।

सर्फुल्ला हॅस कर बोला। "ओ लैजा।लैजा। बस धंधा चालु रख, किसी को छोड़ना नहीं।"

"हाँ शाहजी हाँ। पेला कंडा (पहला कांटा )ही स्टूडेंट युनियन दे प्रधान ते सुट्टया ऐ (फेका है)।" कहता हुआ… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 5, 2015 at 10:32am — 4 Comments

"मास्टरी"

"मास्टरजी तुम्हारा काम बच्चो को पढ़ाना है, इन छोरो के साथ नेतागिरी करना नही।" चौधरी भान सिंह के बेटे की आवाज सुनकर नारेबाजी करते नौजवान कुछ क्षण के लिये शांत हो गये।

गाँव मे नशे के खिलाफ खड़े होने वाले कुछ नौजवानो के साथ आ मिले दो पीढ़ियों से गाँव में मास्टरी कर रहे काशीनाथजी ने उसे किनारे किया और पीछे खड़े भानसिह से मुस्कराकर बोले। "चौधरी साहब। नशाखोरी की लत गाँव के बच्चो को निक्कमा बना रही है, हमारा फर्ज बनता है कि हम इस जंग में इन नौजवानो का साथ दे।"

"मास्टरजी। अपना फर्ज तो तुम कभी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on April 6, 2015 at 10:08pm — 12 Comments

औलाद - लघुकथा

"देख बड़ी बहू तूने छोटी बहू को लेकर डाॅक्टरो के बहुत चक्कर लगा लिये, इससे कुछ नही होगा?" हस्पताल से देवरानी का चेकअप कराकर रमा घर लौटी ही थी कि सासु माँ शुरू हो गयी। "अब तो स्वामी जी की दया हो तो ही छोटी की गोद में किलकारी गूँजेगी।" सासु माँ का बोलना जारी था।

"कल ही स्वामीजी से बात करके ले जाऊँगी इसे उनके आश्रम में 'सप्त रात्रि' की पूजा के लिये।"

"बड़ी बहू अगर तू भी पूजा छोड़ बीच में नही भाग आयी होती तो उन के आर्शीवाद से आज तेरी गोद भी...........।

"बस कीजिये माँजी।" रमा पुरानी… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 24, 2015 at 9:56pm — 25 Comments

जिद्द की दीवार - लघुकथा

जिद्द की दीवार

           पड़ोस के जोशीजी की छोटी बेटी माला फिर मायके लौट आयी थी, बड़ी बेटी कामना पहले ही पति से संबंध विच्छेद के बाद घर में विराजमान थी। जोशीजी बेटियो की जिद्दी स्भाव के चलते चिन्तित रहते थे तो उनकी पत्नी बेटियो के ससुराल वालो को भला-बुरा कहकर अपना मन शान्त कर लेती थी। दिन गुजरने के साथ बूढे माँ बाप की उम्र का ग्राफ बढ़ रहा था और बेटियो की जवानी ढल रही थी।

लेकिन एक शाम छोटा दामाद रवि, अचानक अपनी पत्नि को लिवाने आ पहुँचा तो घर में सभी के चेहरे खिल गये। माला भी…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 17, 2015 at 8:30am — 17 Comments

फासला - लघुकथा

" फासला " (लघुकथा)

                "कादिर मियाँ आप होश में तो है शेख सादी को रिहा करवाना चाहते है, वतन की अमन परस्ती का भी ख्याल करो।" वसीम साहब कुछ तेज आवाज में हैरानी से बोले। जबाब में कादिर मियाँ का लहजा भी उखड़ गया। "वसीम साहब। 'शेख' के रिहा होने से हमारा कारोबारी फायदा होगा, उसकी नजरबंदी से हम पहले ही बहुत नुक्सान उठा चुके है। रही बात हालात की तो उस पर नजर रखना आपकी हुकूमत का काम है।"

                 "ठीक है कादिर मियाँ मगर दहशतगर्दी का क्या जो फिर से..........।" वसीम साहब की…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 10, 2015 at 1:01pm — 16 Comments

नया रेट

"नया रेट"

"जीजी कहाँ हो?" कहती हुयी देवरानी रसोईघर में आ गयी और मुझे बरतन माँजते देख झट बोल पड़ी। "अरे जीजी, क्या हुआ? काम वाली नही आयी।

बस मैं भी शुरू हो गयी। "अरे होना क्या है नीलु। वही मुआ बजट का रोना।" "रसोई के खर्चे,स्कूली फीसे,बिजली-पानी अब सब पर तो बजट का असर पड़ जाता है ना और बच्चो का जेब खर्च अलग से।" नीलु को बात से सहमत देख मैंने अपनी बात जारी रखी। "अब 'इन्होने' तो खर्चा बढ़ाने से मना कर दिया।" "बस सोचा, कामवाली को ही मना कर देती हूँ। टाईम भी पास हो जायेगा और घर का बजट… Continue

Added by VIRENDER VEER MEHTA on March 3, 2015 at 7:45am — 17 Comments

विरासत (लघुकथा)

अब्बाजान के गुजरने के बाद मेरे हिस्से में जो विरासत आयी उसमें पुरानी हवेली के साथ बाबाजान की चंद ट्राफियाँ और मेडल भी थे जिन्हे अब्बुजान हर आने जाने वाले को बड़े शौक से दिखाते थे। मगर हमारे ख्वाबो की शक्ल अख्तियार करती नयी हवेली की सुरत से ये निशानियाँ बेमेल ही थी लिहाजा 'ड्राईंग रूम' से 'स्टोर रूम' का रास्ता तय करती हुयी ये निशानियाँ, जल्दी ही कबाड़ी गफ़ूर चचा की अल्मारियो की शान बन गयी।..........

अब्बुजान की पहली बरसी थी। हम बिरादरी के साथ, अब्बु के इंतकाल के बाद पहली बार आयी नजमा आपा…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 16, 2015 at 5:00pm — 17 Comments

" जवान बच्चे " (लघुकथा)

"कम्मो।जरा इधर तो आ, तूने अचानक काम पर आना कयों बंद कर दिया?" मिसेज माधवी ने बालकनी की खिड़की से ही गली में गुजरती अपनी काम वाली बाई को आवाज लगाई।

"जी मेम साहब। वो क्या है कि अब हम आप के यिहाँ काम नही करेगें।" कम्मो भी गली से ही लगभग चिल्लाती हुयी बोली।

"क्यों कहीं और ज्यादा पैसे मिलने लगे या पैसो की जरूरत नही रही।" मिसेज माधवी की आवाज में कटाक्ष था।

"नही मेमसाहब, बस ऐसे ही...... बच्चे जवान हो गये ना।"

"तेरे बच्चे ?"

"नही नही मेमसाहब ! मेरे नहीं, आपके बच्चे…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on February 4, 2015 at 11:30am — 15 Comments

आज की प्रलय

"आज की प्रलय"

कोहरे का कहर सांझ घिरने के साथ साथ बढ़ता जा रहा था, गंगाजी से उठती ठंडी हवा शरीर को छूरी की तरह काट रही थी। विश्वा को लगने लगा था कि आज की रात रेतीली जमीन पर बिछे चिथड़े भी उसको इस प्रलय से नही बचा पायगें। मानवीय आस तो बाकी थी नही सो विश्वा अपने ईष्ठ देव को ही बार बार याद करने लगा।

"भाई ये बहुत अच्छा हुआ जो सुरज ढलने से पहले संस्कार हो गया ।"

"सही कहा भैयाजी नही तो सारी रात ठंडी में गंगा किनारे ही बितानी पड़ती।"

सामने से गुजरते कुछ लोगो की आवाजे सुनकर…

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Added by VIRENDER VEER MEHTA on January 23, 2015 at 4:30pm — 10 Comments

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