बहते हुए समय के साथ
कदम मिलाकर चल सको
तो अच्छा है,
उसे रोकने की कोशिश मत करो –
तुम्हें धराशायी करके
वह निर्लिप्त, आगे ही बढता जायेगा.
उस धारा में उठती लहरों को
‘गर चूम सको
तो अच्छा है,
उन्हें बाँधने की कोशिश मत करो –
निर्दयी वे, तुम्हें अकेला छोड़
भँवरों में समा जायेंगी.
और, उन तपस्वी वृक्षों तक
यदि पहुँच सको
तो अच्छा है,
उनसे ऊँचा बनने की कोशिश मत करो –
माटी में…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on March 8, 2013 at 12:55am — 5 Comments
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